उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘क्या पढ़ोगी?’’
‘‘वह कह रही हैं कि वह मुझे दुनिया की तवारीख पढ़ा सकती हैं। कुछ पढ़ाएँगी और कुछ उन्होंने एक जखीरा किताबों का इकट्ठा कर रखा है और हर महीने दो-तीन किताबें खरीदती हैं। मैं उनसे पढ़कर आलम-फाज़िल बनना चाहती हूँ।’’
मुहम्मद यासीन बहन को इतनी सरलता से बातें करते सुन चकित रह गया। प्रज्ञा इतिहास नहीं पढ़ी थी और वह दुनिया की तवारीख के विषय में कुछ जानती है, यह उसे भी पता नहीं था। उसने एम.ए. किया था फिलौसोफी और संस्कृत में। परन्तु नगीना के मिथ्या कथन को उसने प्रकट नहीं किया। अब्दुल हमीद तो कुछ भी नहीं पढ़ा था। वह अपने व्यापार की बात जानता था और उसमें ही उसकी सब दुनिया थी।
वैसे तो बाप भी चाहता था कि नगीना वहीं रह जाए और यदि किसी तरह उसका मुहम्मद यासीन से विवाह हो जाए तो बहुत ठीक है। इस कारण उसने लड़की को कह दिया, ‘‘इसके लिए यासीन से इजाजत ले लो। तब मैं मान जाऊँगा।’’
इतनी आसानी से बात बनती देख लड़की बहुत प्रसन्न हुई और बोली, ‘‘भाईजान! आप इजाजत दे देंगे न?’’
‘‘अगर अब्बाजान तुम्हें यहाँ छोड़ने पर राजी हैं तो मैं इन्कार कैसे कर सकता हूँ?’’
‘‘मगर मेरी एक शर्त है?’’ अब्दुल हमीद ने कहा।
‘‘किसके साथ?’’ यासीन ने पूछा।
‘‘तुम्हारे साथ।’’
‘‘फरमाइये।’’
‘‘यह पीछे अलहदा में बताऊँगा।’’
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