उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो मैं नगीना को रहने की इजाजत भी तब ही दे सकूँगा।’’
‘‘परन्तु भाईजान! भाभीजान ने तो इजाजत दे दी है।’’
‘‘तो भाभीजान के घर तुम रह सकती हो। मगर मैं तो अब्बाजान की शर्त सुनकर ही बात करूँगा।’’
‘‘तो मैं भाभीजान के घर रहूँगी। अब्बाजान! अब मैं जाऊँ?’’
‘‘हाँ! जा सकती हो।’’
नगीना ने समझा कि यहाँ रहने की इजाजत मिल गई है। वह उठी और भीतर प्रज्ञा के कमरे में चली गई।
उसके जाने पर पिता ने पुत्र को कहा, ‘‘देखो यासीन! यह लड़की तुम्हारे लिए मैंने मुकर्रर की हुई है। यह तुम्हारी बीवी बनने वाली है।’’
‘‘अब्बाजान! यह तो हमशीरा है।’’
‘‘नहीं! यह मेरी लड़की नहीं है। इसकी अम्मी हामला थी जब मेरे घर में आई थी। तब उसने मुझसे शादी कर ली। इसकी पैदायिश तो मेरे घर में ही हुई है, मगर यह मेरी औलाद नहीं है। शरअ की रूह तुम इससे शादी कर सकते हो। यह तुम्हारी हमशीरा नहीं है।’’
‘‘मगर अब्बाजान! मैं शरअ की बात नहीं कर रहा। मैं तो अपनी प्रज्ञा से शादी की बात कर रहा हूँ। मैंने उससे कोर्ट में शादी की है। उसके बाद में दूसरी शादी नहीं कर सकता।’’
‘‘ओह! मगर तुमने ऐसा क्यों किया है?’’
‘‘जब हमने शादी का फैसला किया जो वह बोली कि आर्यसमाज में चलकर वेदमंत्रों से शादी कर लेते हैं। मैंने कहा, मुल्ला को बुलाकर कुरान की आयतें पढ़ा कर शादी कराएँगे।’’
‘‘इस पर समझौता हो गया कि न हिन्दू तरीके से शादी हो और न मुसलमानी तरीके से शादी हो और वह कोर्ट में जाकर हो।’’
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