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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘तुम भी गधे हो! अब उसको तलाक कैसे दोगे?’’

‘‘वह जब कोई बेवफाई करेगी।’’

‘‘वह बेवफाई क्यों करेगी? उसको तुम-जैसा गधा खाविन्द मिल गया है तो वह बेवफाई क्यों करेगी?’’

‘‘तो गधे से बेवफाई नहीं की जाती?’’ यासीन ने मुस्कराते हुए पूछ लिया।

अब्दुल हमीद जब से दिल्ली में आया था, वह जिससे बात करता था, वह उसे निरुत्तर कर देता था। इस कारण वह झुँझलाकर बोला, ‘‘देखो यासीन! मैं तुम्हारे जितना पढ़ा हुआ नहीं और बहस नहीं कर सकता। इस पर भी मैं यह उम्मीद करता हूँ कि तुम मेरा कहा मानोगे।’’

‘‘अब्बाजान! मुझे मानने से इन्कार नहीं। परन्तु आपने पहले यह कभी बताया भी तो नहीं था। अगर मेरे दिमाग में यह बात पहले होती तो मैं उसे हमशीरा नहीं मानता। न ही मैं किसी दूसरी से कचहरी में जाकर शादी करता।’’

‘‘अब उससे लड़ पड़ो और फिर तलाक दे दो।’’

‘‘अब्बाजान! आप कानून नहीं जानते। लड़ने से तलाक मंजूर नहीं हो सकता। इसमें कुछ शर्तें हैं जिनके मुताबिक ही तलाक हो सकता है। लड़ाई उनमें नहीं है।’’

‘‘तुम उसे हर रोज पीटना शुरू करो। बस, वह खुद तलाक की अर्जी कर देगी।’’

‘‘बेकसूर पीटना शुरू कर दूँ?’’

‘‘बस, पीटने के लिए ही पीट दिया करो।’’

‘‘मगर यह तो खुदा के हुक्म के खिलाफ होगा। वह हमको इन्साफ करने को कहता है।’’

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