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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘अच्छा! अपनी अम्मी को मेरे पास भेज दो। मैं उसे समझाऊँगा। वह तुमसे ज्यादा समझदार है। वह समझ जाएगी।’’

मुम्मद यासीन उस कमरे में गया, जिसमें अम्मियाँ बैठी बातें कर रही थीं। यासीन ने अब्बाजान की आज्ञा सुना दी और सरवर बाहर ड्राइंग-रूम में आ गई।

सरवर से तो पहले ही बात हो चुकी थी। इस कारण अब्दुल हमीद ने कहा, ‘‘देखो बेगम! मैं नगीना को यहाँ छोड़ जा रहा हूँ। यह अब तुम्हारा काम है कि यासीन और उसकी बीवी में अनबन पैदा कर दो और उसकी जगह पर नगीना को बैठा दो।’’

सरवर ने एक क्षण तक आँखें मूँद कर विचार किया और कह दिया, ‘‘मैं कोशिश करूँगी।’’

‘‘हाँ! मैंने इस यासीन की बीवी से बातचीत की है। वह मुसलमान नहीं है। वह अपने को इन्सान कहती है। इसलिए वह एक मोमिन की कमाई पर नहीं पल सकती है।’’

‘‘तुम्हारा बेटा गधा है, जो उसने इसके साथ कोर्ट में शादी की है। इस शादी को तुड़ा देना चाहिये।’’

‘‘कोशिश करूँगी।’’

‘‘हाँ! मैं इस आलीशान मकान की मलिका एक मोमिन को बना देखना चाहता हूँ।’’

‘‘देखिये हजरत! वैसे मैं चाहती तो नहीं जो आप चाहते हैं मगर आपके हुक्म की तामील करने की कोशिश करूँगी।

‘‘अगर जो मेरे तलाक देने की बात होती तो मैं आपका कहना मान, जैसा आप कहते, कर देती। मगर आप तो किसी दूसरे की बाबत कह रहे हैं। मैं कोशिश करूँगी कि आपका साहबजादा मान जाये।’’

‘‘ठीक है। नगीना को अपने इस सवाब के काम में इस्तेमाल कर सकती हो।’

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