उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
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नगीना उठकर जाने लगी तो फिर बैठ गई। प्रज्ञा ने पूछा, ‘‘हाँ! अब क्या है?’’
‘‘भाभी! एक बात आपको बताना चाहती हूँ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘मगर अम्मी से नहीं कहियेगा।’’
‘‘यह तो बहुत मुश्किल है। अगर वह मुझसे पूछेंगी तो सच-सच बता दूँगी।’’
‘‘मगर अपने आप नहीं कहना?’’
‘‘हाँ, स्वयं नहीं कहूँगी। मगर तुम अम्मी से कुछ चोरी किसलिए रखना चाहती हो?’’
‘‘इस वास्ते की वह बात बहुत अच्छी है, मगर यहाँ अम्मी और बम्बई वाले सब लोग पसन्द नहीं करेंगे।’’
‘‘क्यों नहीं करेंगे? जब बात अच्छी है तो वे क्यों पसन्द नहीं करेंगे?’’
‘‘मुझे शक है कि वे पसन्द नहीं करेंगे। कम-से-कम अब्बाजान तो पसन्द नहीं करेंगे।’’
प्रज्ञा को सन्देह होने लगा था कि कुछ अपने विवाह की बात करना चाहती है। उसने भी पहले दिन इसके विवाह की बात अपनी माँ से कही थी, जब वह नगीना को उमाशंकर के पास छोड़ माताजी से बात करने कमरे में गई थी।
प्रज्ञा ने कहा था, ‘‘माँ! आप लोग इस नगीना को दादा की पत्नी
के रूप में कैसा पसन्द करेंगी?’’
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