उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
अब जब नगीना कहने लगी कि कुछ बात है, जिसे वह अपनी अम्मियों तथा अब्बाजान से छुपाकर रखना चाहती है तो प्रज्ञा ध्यान देकर उसकी बात सुनने लगी। उसने इतना वचन दे दिया, ‘‘मैं अपने आप किसी से कुछ नहीं कहूँगी। हाँ, कोई किसी अन्य स्रोत से बात जानकर मुझसे पूछेगा तो सब बता दूँगी।’’
नगीना ने कुछ विचार किया और फिर कह दिया, ‘‘भाभी! ठीक है। यह देखिए।’’ इतना कह उसने अपनी अंगिया के भीतर से एक चिट्ठी निकाल कर दिखा दी। यह उमाशंकर की लिखी चिट्ठी थी। चिट्ठी अंग्रेजी में लिखी थी। प्रज्ञा ने पढ़ी तो पूछ लिया, ‘‘यह कब मिली है?’’
‘‘भाभी! मिली नहीं, मैंने यह माँग कर ली है।’’
‘कैसे और कब?’’
‘‘कल जब आप हमें इकट्ठे छोड़कर अपनी माताजी से बात करने गई थीं, तब उनसे बात हुई थी। उन्होंने यह जबानी कहा तो मैंने कहा कि वह मुझे लिखकर ‘प्रोप्रोज’ करें। यह उन्होंने तुरन्त अपने कमरे में जा लिखी और लिफाफे में बन्द कर मुझे दे दी।’’
‘‘यह रात मैंने पढ़ी थी और उसके जवाब में एक चिट्ठी लिखी है। उसमें मैंने तीन रुकावटों का जिक्र किया है। एक अब्बाजान, दूसरे मेरी अम्मी और तीसरे मेरा नाबालिग होना। इन रुकावटों को दूर करने का तरीका भी बताया है। वह यह कि वह दो साल तक मेरा इन्तजार करें।’’
‘‘और वह चिट्ठी भेज दी है?’’
‘‘नहीं, अभी नहीं। मैं अब कोठी से बाहर जाकर यहाँ डाकखाना ढूँढ़ने वाली हूँ। वहाँ से स्टैम्प्स लगाकर आपके भाईसाहब को भेजना चाहती हूँ।’’
‘‘वह मुझे दे दो, मैं भेज दूँगी।’’
‘‘कैसे भेज देंगी?’’
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