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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

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रात का खाना खाते हुए नगीना ने कहा, ‘‘भाभी! आपके भाई साहब ने चिट्ठी में ऐसे इल्फाज़ लिखे हैं, जिनका मैं ठीक-ठीक मतलब नहीं समझ सकी।’’

‘‘तो,’’ प्रज्ञा ने कह दिया, ‘‘खाने के बाद मेरे कमरे में आना और मैं तुम्हें समझा दूँगी। मगर इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें किसी अमल की राय दे रही हूँ।’’

उस समय तो नगीना चुप रही, मगर खाने से उठते ही वह भाभी के साथ उसके कमरे में चली गई। प्रज्ञा का पति समझ रहा था कि कुछ अपने भाई के विषय में कहने के लिए वह नगीना को अपने कमरे में ले गई है। इसलिए वह उन दोनों की, बातचीत से अवकाश पाने की प्रतीक्षा करने लगा। इस समय उसकी माँ उसके पास आकर नगीना के विषय में बात करने लगी थी।

प्रज्ञा को पीटने की बात जब चली तो अम्मी रोनी सूरत बना वहाँ से भागी थी। यासीन विचार कर रहा था कि अब तक प्रज्ञा और नगीना को आ जाना चाहिए था। मगर वे नहीं आ रही थीं। उनको अपनी वार्तालाप समाप्त करने में एक घंटा लगा।

जब वे दोनों कमरे में से निकल ड्राइंगरूम में आईं तो उस नगीना ज्यादा प्रसन्न प्रतीत हुई और प्रज्ञा कुछ चिन्तित दिखाई दी।

उसने दोनों को देख कहा, ‘‘ऐसा मालूम होता है कि तुम नगीना को मिठायी खिलाती रही हो।’’

‘‘हाँ, मगर सिर्फ दिमागी मिठाई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इसको मिठाई अनुकूल बैठ रही है।’’

इस पर नगीना ने कहा, ‘‘भाईजान! मैं बताऊँ, क्या मिठाई खिलाई है भाभी ने?’’

‘‘हाँ, चाहो तो बता सकती हो।’’

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