लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘हाँ, वह विवाहने योग्य हो गई है। साधु के मन में कुछ मैल प्रतीत होता है। उसके विषय में वह भगवान का आदेश सुनाता ही नहीं।’’

‘‘वह बड़ौज से विवाह करना चाहती है।’’

‘‘सच?’’

‘‘वह मुझको कह गई है।’’

‘‘कल बड़ौज से पूछकर मैं साधु से बात करूँगा।’’

‘‘हाँ, उस गौ का उद्धार कर दो!’’

बात रात को ही हो गई। साधु आया और विवाह से पूर्व ही बिन्दू और बड़ौज के परस्पर मिलने की बात करने लगा। चौधरी ने कह दिया, ‘‘साधु लड़की सज्ञान हो गई है, उसके विषय में भगवान का आदेश सुना दो! और फिर वह बड़ौज से विवाह कर लेगी।’’

‘‘क्या दोगे?’’

‘‘क्या चाहते हो?’’

‘‘पचास रुपये!’’

इतने में बड़ौज वहाँ आ गया और झगड़ा हो गया। साधु गया तो चौधरी उसके पीछे-पीछे उसे समझाने के लिए चला गया। बड़ौज को सन्देह था कि झगड़ा होगा। इस कारण वह भी अपना छुरा निकालकर उसके पीछे चल पड़ा। दोनों नदी के किनारे खड़े हो गए। चौधरी ने पूछा, ‘‘यहाँ किसलिए आए हो?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book