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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘हाँ, दो पुरुष और दो औरतें ले गए हैं।’’

‘‘क्या उनकी गठरी बाँधकर सिर पर उठाकर ले गए हैं?’’

सरपंच इसका अर्थ नहीं समझ सका। इससे वह चीतू का मुख देखता रह गया। चीतू ने सरपंच को चुप देख कह दिया, ‘‘मेरे कहने का अभिप्राय है कि चौधरी की पत्नी सोना अपने पाँवों से चलकर ही गई होगी। इसी प्रकार बिन्दू भी गई होगी। कल पंचायत के बाद मेरे पिता ने दो व्यक्तियों को नदी पार करते देखा था। मेरा अनुमान है कि वे बड़ौज और बिन्दू ही होंगे। दोनों स्वेच्छा से नदी तैर रहे थे।’’

‘‘औरतें कबीले की सम्पत्ति हैं। बिना पंचायत की स्वीकृति के कोई उन्हें बाहर नहीं ले जा सकता।’’

‘‘चौधरी का विवाह तो पंचायत की स्वीकृति से ही हुआ था और सोना अपने पति के साथ ही गई है। रही बिन्दू की बात। कल उसके विवाह की बात हुई थी। पंचायत ने उसका विवाह करने की स्वीकृति क्यों नहीं दी? उसको सज्ञान हुए दो वर्ष से भी अधिक हो गए हैं।’’

‘‘किन्तु यह कोई कारण नहीं कि उसको कोई भगाकर ले जाए।’’

‘‘कारण तो है। विवाह करने की इच्छा सबकी होती है। उसको रोकना अनुचित था; और अनुचित बात का विरोध उचित ही कहा जा सकता है।’’

‘‘परन्तु भगवान की इच्छा के बिना किस प्राकर स्वीकृति मिल सकती थी।’’

‘‘भगवान की इच्छा से ही तो वह और बड़ौज विवाह की इच्छा कर रहे थे। साधु ने भगवान की इच्छा का विरोध किया और भगवान ने उस को चौधरी के हाथों मरवा डाला। फिर कल वाली पंचायत ने भगवान की इच्छा का विरोध किया और बड़ौज ने पंचायत की अवहेलना की और वह चढ़ी हुई नदी पार करने में सफल हो गया।’’

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