उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
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जिस दिन बड़ौज और बिन्दू अपनी बस्ती से लापता हुए थे, उसी रात चौधरी धनिक और सोना अपनी सब नकदी और जो कुछ वे उठा सकते थे, लेकर लुमडिंग की ओर चल पड़े। दिन निकलने से पूर्व वे बीस मील निकल गए थे। दिन निकलते ही सरपंच दंड का रुपया वसूल करने चौधरी के पास आया तो उसकी झोंपड़ी खाली देख, विचार करने लगा। झोंपड़े का सामान अस्त-व्यस्त पड़ा था। एक-दो स्थान पर भूमि खोदी हुई थी। मानो वहाँ पर गाढ़ी हुई कोई वस्तु निकाली गई हो।
सरपंच ने पड़ोसियों से पूछा किन्तु किसी को इस विषय में ज्ञात न था। केवल लीमा की सबसे छोटी बहू सूजा सरपंच की बात सुनकर हँस पड़ी। उसको हँसते देख सरपंच ने कहा, ‘‘तुम्हें विदित है क्या?’’
‘‘क्या विदित है?’’
‘‘चौधरी कहाँ गया है?’’
‘‘मुझे क्या पता। रात को सोना मौसी आई थी। यहाँ बहुत देर तक बैठी रही थी।’’
‘‘क्या कहती रही थी?’’
‘‘कल सुबह से उसका लड़का बड़ौज घर नहीं लौटा था। उसके विषय में चिन्ता कर रही थी।’’
‘‘बिन्दू भी लापता है। उसकी माँ भी रोती रही है।’’
सूजा फिर हँस पड़ी। सरपंच को क्रोध चढ़ आया। उसने क्रोध में ही कहा, ‘‘तुमको हँसी सूझ रही है?’’
‘‘क्या हँसना मना हो गया है?’’
सरपंच ने पंचायत बुलाने का ढोल पीट दिया। पंचायत एकत्रित हो गई। आज की पंचायत में चीतू भी उपस्थित था। वह वहाँ तमाशा देखने के लिए आया था।
जब सब आने वाले आ गए तो गेंदा सरपंच ने कहा, ‘‘कल से चौधरी का बेटा बड़ौज और गदरे की बेटी बिन्दू भाग गए हैं। आज पता चला कि चौधरी धनिक और उसकी पत्नी सोना भी अपना झोंपडा खुला छोड़कर चले गए हैं।
‘‘बस्ती की कोई वस्तु ले गए हैं क्या?’’ चीतू ने खड़े होकर पूछा।
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