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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


अगले दिन उसको एक इमारत पर ईंट ढोने को लगा दिया गया। यह काम उसे कठिन तो प्रतीत नहीं हुआ, परन्तु वह स्वयं को इससे किसी अच्छे काम के योग्य समझता था। फिर भी उसने कुछ कहा नहीं। आठ घण्टा काम कराकर उसके हाथ पर एक रुपया रख दिया गया। जब वह घर आया तो बिन्दू उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसने दिन-भर का हाल कह सुनाया कि पहले उसको एक किताब में से पढ़ाया गया। जब एक घण्टे तक पढ़ाई और लिखाई हो गई तो फिर उसे एक स्थान पर सिलाई का काम सिखाने के लिए ले गए। कुछ-कुछ तो वह जानती थी, कुछ और बताया गया तो वह समझ गई। चार घण्टे काम कराकर उसे आठ आने दे दिए गए।

बड़ौज ने अपना एक रुपया दिखाया। इसके बाद जीवन में पहली बार बिन्दू वार्डन की पत्नी के साथ रसद पानी खरीदने के लिए गई। वह आठ आने की रसद ले आई और घर आकर मिसेज़ पाल के दिए हुए बर्तनों में अपने ढंग से खाना बनाने लगी।

आठ आने में इतनी खाद्य-सामग्री मिली थी कि प्रातः-सायं दो बार का भोजन बनाने के बाद भी उसमें से बच गई थी।

तीन महीने में ही बड़ौज ने कह दिया कि वह राजगीर का कार्य कर सकता है। उसकी परीक्षा ली गई और उस दिन से वह दो रुपये रोज़ का कारीगर मान लिया गया।

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