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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


श्रीपति बहन से पूछने का साहस नहीं कर सका कि उसकी दृष्टि किस पर है, कौन एम० ए० पास है जिसको वह कृष्णकांत खड़वे पर वरीयता दे रही है?

समय व्यतीत होता गया और कुछ भी निश्चय नहीं हो सका। सुदर्शन प्रायः श्रीपति के साथ उसके घर आया करता था और अब तो उसका नलिनी के साथ घूमना-फिरना भी होने लगा था। नलिनी बहुत बन-ठनकर और प्रायः श्रृंगार किए रहती थी। इससे सुदर्शन और नलिनी का इकट्ठे दिखाई देने का अर्थ यही लिया जाता था कि दोनों का शीघ्र विवाह होगा।

श्रीपति पहले तो प्रतीक्षा करता रहा कि दोनों में से कोई अपने विवाह की बात उससे करेगा। जब ऐसी कोई बात नहीं हुई और सुदर्शन ने अपना डी० एस-सी० का ‘थीसिज़’ भी दे दिया तो श्रीपति ने समझा कि अब समय है, जब दोनों के सम्बन्धों का ज्ञान सब परिचितों को हो जाना चाहिए।

एक दिन उसने नलिनी को सुदर्शन की प्रतीक्षा मैं बैठक में बैठे देखा तो उसके समीप आ पूछने लगा, ‘‘नलिनी। मुझे ज्ञात हुआ था कि सुदर्शन से तुम्हारा विवाह शीघ्र होने वाला है। देखो, बहन! हमको समय रहते ही पता हो जाना चाहिए। कुछ तो प्रबन्ध करना ही होगा।’’

‘‘पर भैया! यह आपको किसने बताया है कि शीघ्र ही कुछ होने वाला है?’’

‘‘मेरे मन ने।’’

‘‘देखो, भैया। मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही हूँ कि वह मुझे ‘प्रोपोज़’ करें। परन्तु यह कब होगा, मैं कह नहीं सकती। फिर भी उनको ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि मिलने से पूर्व तो होगा नहीं।’’

‘‘तो उसने अभी ‘प्रोपोज़’ भी नहीं किया?’’

‘‘नहीं! यद्यपि विवाहित जीवन की अनेक बातों पर हम वार्तालाप कर चुके है, परन्तु अपने को लक्ष्य रखकर हम में कभी बात नहीं हुई।’’

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