उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘तो तुम्हारा अभिप्राय है कि इंजन में आत्मा स्टीम है? बिजली के बल्ब में बिजली आत्मा है, कैरोसिन के लैम्प में कैरोसिन तेल आत्मा है।’’
सुमति हँस रही थी। सुदर्शन ने देखा तो पूछने लगा, ‘‘क्यों, हँस क्यों रही हो? मैं तो तुम्हारी आत्मा को देखकर उसकी हुलिया उधेड़ रहा हूँ।’
‘‘वह क्या होता है?’’
‘‘आत्मा का रहस्योद्घाटन कर रहा हूँ।’’
‘‘परन्तु न तो स्टील आत्मा है न ही मिट्टी का तेल, इसी प्रकार बिजली भी आत्मा नहीं है।’’
‘‘तो आत्मा कहाँ है?’’
‘‘देखिए जल है, जल में विद्युत के चलन से जल विभक्त हुआ। विद्युत का संचय और चलन किसने किया? वैज्ञानिक ने। अतः जल से चलने वाली बिजली आत्मा नहीं हुई, प्रत्युत उसे तो वैज्ञानिक की आत्मा चलाती है। इसी प्रकार इंजन में वाष्प डालने वाला वह वैज्ञानिक है जिसने वाष्प की शक्ति का ज्ञान प्राप्त किया और उसने डालने का ढंग सोचा।
‘‘न तो वाष्प स्वयं बनती है और न स्वयं इंजन में आकर बैठ जाती है। इसी प्रकार वह स्वयमेव इंजन को चलाती भी नहीं। फायरमैन आग और पानी के संयोग से वाष्प बनाता है और ड्राइवर इंजन का वाल्व खोलता है तो वाष्प इंजन में पहुँचकर उसको चलाती है।’’
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