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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘प्रशंसा अथवा निन्दा?’’ सुदर्शन ने मुस्कराकर पूछा।

‘‘समझने वाले के लिए निन्दा ही थी, परन्तु मैं समझती हूँ कि वह उसे प्रशंसा ही समझ रही थी। बेचारी बहुत सी सरल-हृदया है। मैं उसके दामाद की प्रशंसा के पुल बाँध रही थी। नलिनी आई तो वह सब समझ गई। उसने तो मुझे उसकी कलाई को काटते और उसमें से रक्त प्रवाहित होते देखा था।’’

‘‘वह मुझे अपनी भाभी के कमरे में ले गई और मेरे पाँव पकड़कर अपने पति की ओर से क्षमा-याचना करने लगी। उसने वचन ले लिया कि मैं उसके पति की उस काली करतूत को आपके अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं बताऊँगी।’’

‘‘मुझे बताने के लिए छूट क्यों मिल गई?’’

‘‘इसलिए कि आप और मैं तो एक ही है।’’

सुदर्शन खिलखिलाकर हँस पड़ा। हँसकर बोला, ‘‘तुम ठीक कहती हो। हम दो शरीर एक प्राण हैं। परन्तु हमारे कार्य भिन्न-भिन्न है। मैं वैज्ञानिक हूँ, तुम साहित्यिक हो।’’

‘‘हाँ, आपके जड़-विज्ञान में चेतना का संचार करने वाली हूँ।’’

‘‘आत्मा जड़ है या विज्ञान?’’

‘‘विज्ञान जड़ नहीं। विज्ञान को जड़ वस्तुओं के ज्ञान का नाम है। ज्ञानवान् आत्मा है। आत्मा, मेरा अभिप्राय ज्ञाननान् प्राणी, उन जड़ पदार्थों में जिनका ज्ञान वह प्राप्त कर लेता है, बैठकर उनको चलायमान कर देता है।’’

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