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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘तो विवाह क्या रोने की बात होती है?’’ श्रीपति ने पूछा।

सुदर्शन ने घूमकर नलिनी की ओर देखा। नलिनी के अश्रु उसके गालों पर ढुलक पड़े थे। यह देख उसने कह दिया, ‘‘नलिनी बहन तो कुछ ऐसा ही कह रही प्रतीत होती है।’’

‘‘नलिनी बहन!’’ नलिनी ने सुना तो चुपचाप उठी और अपने सोने के कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया।

नलिनी के एकाएक उठकर चले जाने पर श्रीपति गम्भीर हो गया। उसने सुदर्शनलाल से कहा, ‘‘सुदर्शनलाल! यह तुमने क्या कर दिया है?’’

‘‘क्यों? मैंने क्या कर दिया है?’’ सुदर्शन समझ तो रहा था, परन्तु वह अपने मुख से कैसे कह सकता था कि उसको नलिनी के भावों का ज्ञान था।

‘‘हम सब, मेरा अभिप्राय है माँ, नलिनी की भाभी और मैं भी, यह आशा कर रहे थे कि एक दिन तुम उससे विवाह का प्रस्ताव करोगे।’’

‘‘ओह! परन्तु मेरे किस व्यवहार से आपने यह आशा की थी?’’

‘‘तुम दोनों प्रायः एकान्त में बैठ घुट-घुटकर बातें किया करते थे।’’

‘‘वह तो हम साहित्य-चर्चा किया करते थे। जहाँ तक मुझको स्मरण है, हमने कभी भी अपने विषय में बात नहीं की।’’

‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि नलिनी को बहुत दुःख हुआ है।’’

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