उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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विवाह से एक दिन पूर्व सुदर्शन नलिनी से मिलने उसके घर गया। इसका उद्देश्य यह था कि वह अपनी सफाई देकर विवाह में सम्मलित होने के लिए मना ले। उसे अपने वाक्-चातुर्य पर बहुत विश्वास था।
जब वह वहाँ पहुँचा तो नलिनी ड्राइंग-रूम में बैठी उपन्यास पढ़ रही थी। सुदर्शन ने द्वार पर ही खड़े हो नमस्ते कह दी–‘‘नलिनी देवी! नमस्ते। कहिए कैसी हैं?’’
‘‘आप! किसलिए आए हैं?’’
‘‘नलिनी बहन को स्मरण कराने के लिए कि उसे कल बारात के समय से एक घंटा पहले ही पहुंच जाना चाहिए।’’
‘‘क्यों? किसलिए?’’
‘‘बहन बन मुझतो आशीर्वाद देने के लिए।’’
‘‘लज्जा नहीं आती आपको, मुझे बहन कहते हुए?’’
‘‘इसमें लज्जा की क्या बात है? यह तो बहुत ही पवित्र सम्बन्ध है।’’
‘‘मैं ऐसा नहीं मानती। और क्या मेरा आपसे कुछ इससे अधिक सम्बन्ध नहीं रहा?’’
‘‘मुझको तो स्मरण नहीं। यह ठीक है कि हम दो पढे़-लिखे युवा व्यक्तियों की भाँति उन विषयों पर भी बातें करते रहे है, जो युवा लोग पसन्द करते है। परन्तु इसका अर्थ यह कैसे हो गया कि हमारा किसी प्रकार का घनिष्ठ सम्बन्ध था अथवा भाई-बहन से कुछ अन्य सम्बन्ध था?’’
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