उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘बहुत धूर्त हैं आप।’’
‘‘हो सकता है; पर नलिनी! तुम तो मेरी बहन हो। तुम्हें मेरा धूर्तपन क्षमा कर देना चाहिए।’’
नलिनी ने एक क्षण विचारकर कहा, ‘‘हाँ, कर तो सकती हूं, परन्तु बहन के नाते नहीं।’’
‘‘तो किस नाते क्षमा कर सकती हो?’’
‘‘कोई नाता नहीं। ‘द सब्जेक्ट मैटर इज़ स्टिल ओपन’।’’
‘‘यह मुझको स्वीकार है। अब तो आओगी न?’’
‘‘समय पर आऊँगी, पहले नहीं।’’
सुदर्शन और नलिनी का नाता अभी अनिर्णीत था। सुदर्शन घर जाता हुआ उन सब संभावनाओं पर विचार करने लगा, तो उसके नलिनी के साथ सम्बन्ध को अनिश्चित छोड़ने पर उत्पन्न हो सकती थीं। फिर सुमति के सौन्दर्य को स्मरण कर किसी प्रकार की भी संभावना की आशंका न करता हुआ वह नलिनी को भूल गया।
सुदर्शन के चले जाने के उपरान्त श्रीपति, जो पर्दे के पीछे खड़ा उन दोनों का वार्तालाप सुन रहा था, ड्राइंग-रूम में चला आया और नलिनी के समीप बैठकर बोला, ‘‘नलिनी! वह तो तुम्हारे लाँछन को स्वीकार नहीं करता। मैं समझता हूँ कि तुमको भ्रम हो गया है कि वह भी तुमसे प्रेम करता है।’’
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