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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘वह मान तो गया है।’’

‘‘कैसे?’’

‘‘जब मैंने कहा कि बड़े धूर्त हो तुम, तो वह मेरे इस कथन को चुनौती नहीं दे सका। वह मुझसे क्षमा माँगने लगा था।’’

‘‘यह तो वह तुमसे हँसी कर गया है। उसने कहा तो था कि बहनें क्षमा करती ही हैं।’’

‘‘परन्तु उसने यह भी तो माना है कि ‘दि सब्जेक्ट मैटर इज़ स्टिल ओपन’।’’

‘‘तुम कुछ मूर्ख होती जा रही हो। मैं तो यह चाहता हूं कि तुम अब खड़वे से विवाह स्वीकार कर लो।’’

नलिनी ने सिर हिलाकर अस्वीकार करते हुए पूछ लिया, ‘‘आप कल इनकी बारात में सम्मिलित होने के लिए किस समय यहाँ से जाएँगे?’’

‘‘मैं तो नहीं जा रहा।’’

‘‘क्यो?’’

‘‘कल ‘हिस्टोरिकल सोसायटी’ में मेरा व्याख्यान है।’’

‘‘ओह! तो मुझको अकेले जाना होगा।’’

श्रीपति चुप रहा। नलिनी का स्कूल नई दिल्ली में था। वह विचार करने लगी कि वह स्कूल से सीधी सुदर्शनलाल के घर चली जाएगी।

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