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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


दूसरे बैठे लोग हँसने लगे। भगवानदास और नूरुद्दीन प्रश्नभरी दृष्टि से लाला लोकनाथ की ओर देखने लगे तो उन्होंने कह दिया, ‘‘भगवान! वे घड़ियों वाले लाला तुम्हारी सादी की बात कर गए हैं। यह लड़का रोकने के लिए दे गए हैं। इक्कीस रुपए और चौदह छुहारे के जोड़े हैं।’’

नूरुद्दीन ने भगवान की पीठ पर हाथ फेरकर कह दिया, ‘‘मुबारक हो दोस्त!’’

लोकनाथ ने नूरुद्दीन से पूछ लिया, ‘‘नूरे! तुम्हारी भी तो शादी होनेवाली है?’’

‘‘हाँ बाबूजी! इस महीने की पन्द्रह तारीख को।’’

‘‘हाँ! तुम्हारा श्वसुर आया था और बता गया है।’’

‘‘क्या कहता था?’’

‘‘कुछ नहीं। कुछ रुपए की मदद माँग रहा था।’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘भाई, शादी में कुछ तो खर्च होता ही है।’’

नूरुद्दीन को उधार लेकर शादी करने की बात पसन्द नहीं आई। उस दिन वह घर गया तो अपनी माँ से कहने लगा, ‘‘अम्मी! सुना है, कम्मो का बाप लड़की की शादी करने के लिए रुपए उधार ले रहा है।’’

‘‘तो?’’

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