उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
शहंशाह के दस सहस्र के साथ इससे दुगुना-दुगुना तीनों सेठों ने दिया। इस प्रकार अपनी योग्यता आरम्भ कर विभूतिचरण ने पूछ लिया, ‘‘यह दूसरा भव्य भवन किसका बन गया है?’’
रामकृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘शहंशाह ने अपनी रखैल सुन्दरी के रहने के लिए महल बनवाया है। उसके पति को उसके साथ रखकर खरैड़ा गाँव उसके नाम कर दिया है।’’
‘‘ओह!’’ पण्डित जी अवाक् बैठे रह गए। रामकृष्ण ने ही आगे बताया, ‘‘सुन्दरी का घरवाला आगरा के जौहरी का लड़का है जो सुन्दरी के साथ विवाह करने के कारण मुसलमान हो गया है। उसका नाम मिर्ज़ा नूरूद्दीन रखा गया है।’’
‘‘और सुन्दरी का क्या नाम हो गया है?’’
‘‘उसका नाम तो सुन्दरी ही रहने दिया गया है। अब वह गर्भ से है। उसके बच्चे के नाम के लिए एक मुल्ला कभी-कभी आता देखा जाता है।’’
विभूतिचरण सुन्दरी के इतिहास को जानता था और वह समझ गया कि अकबर ने अपनी औलाद से मुहम्मद साहब की उम्मत बढ़ाने की योजना बनाई है। वह मौन रहा।
इस पर रामकृष्ण ने कहा, ‘‘मिर्ज़ा साहब आकर आपके विषय में पूछा करते हैं।’’
‘‘सत्य? वह मेरे विषय में क्या जानता है और कैसे जानता है?’’
‘‘यह तो वह स्वयं ही बता सकता है। हमारा उससे मेलजोल तो है, परन्तु लेन-देन नहीं।’’
‘‘लेन-देन का क्या मतलब?’’
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