लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


सुंदरी ने देखा। यह वही अंगूठी थी जो उसका विवाहित पति उसे दे गया था और जिसे वह अपनी माँ भटियारिन राधा के पास रखे हुए थी।

‘‘कहाँ से पा गई हो यह?’’

‘‘यह किसकी है?’’ मीना ने पूछा।

‘‘मेरी है। मेरे पति ने मुझे दी थी और मेरी माँ के पास रखी थी।’’

‘‘तो बस उसी ने दी है।’’

‘‘किसलिए दी है।’’

‘‘सुंदरी को दिखाने के लिए।’’

‘‘परंतु मैं इसके योग्य नहीं रही। मैं पतित हो चुकी हूँ।’’

‘‘मैंने देनेवाले को बताया था। वह कहता था कि वह तुम्हें पवित्र कर लेगा।’’

‘‘मगर वह इतने दिन तक कहाँ था?’’

‘‘कहता था कि मिलने पर बताएगा।’’

‘‘तो मिल ले।’’

‘‘यहाँ तुमसे मिलते यदि किसी ने देख लिया तो उसे फाँसी पर लटका दिया जाएगा।’’

इस संभावना को सुन सुंदरी काँप उठी। कुछ विचार कर बोली, ‘‘तो उसे कह दो, मुझे भूल जाए।’’

‘‘वह तुमको यहाँ से ले जाना चाहता है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book