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धरती और धन
धरती और धन
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 7640
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
जब से उसने कपड़े सीने का काम आरम्भ किया था, उसकी सास और जेठानी ने उसका बहिष्कार कर रखा था। किन्तु इसकी रामरखी को चिन्ता नहीं थी।
जब उसने गली का मकान छोड़ा और ग्वाल मंडी में जाकर रहने लगी, तो बहिष्कार के साथ-साथ निन्दा भी होने लगी। इसका भी रामरखी पर कुछ प्रभाव नहीं हुआ। एक दिन वह गली में सिले हुए कपड़े देने आई तो एक पड़ोसिन ने उसको घर पर बुलाकर कहा, ‘‘क्यों रामो ! तुमने नया पति कर लिया है?’’
‘‘नहीं तो माँ ! किसने कहा है तुम को?’’
‘‘किसी ने भी सही। तुम अपनी सास का घर छोड़कर क्यों चली गई हो?’’
‘‘उस घर में अँधेरा और गन्दी थी। फकीर के पिता इसी कारण बीमार हुए थे और अब फकीर भी बीमार रहने लगा था। दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँककर पीता है। मुझको डर लगने लगा था।’’
‘‘तो वहाँ कोई आदमी तुम्हारे पास रहता है?’’
‘‘नहीं, कोई नहीं रहता।’’
‘‘तभी तो बदनाम हो रही हो।’’
‘‘पर मैंने अपनी सास और श्वसुर को चलने के लिए कहा था। वे माने नहीं। अब और तो मेरा कोई है नहीं, क्या करूँ?’’
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