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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


मोहन की माँ ने काम ले देने में सहायता की, रामरखी का काम चलने लगा। आठ-दस आने का काम नित्य निकलने लगा। मोहन के पिता ने एक दर्जी से, जो गली के बाहर बैठता था, सिलाई का काम ले देने का प्रबन्ध कर दिया।

रामरखी ने फकीरचन्द को स्कूल में भर्ती करा दिया। धीरे-धीरे रामरखी की योग्यता बढ़ने लगी और मुहल्ले के बच्चों के कपड़े सीने का काम उसको मिलने लगा। इस प्रकार फकीरचन्द का पालन-पोषण और पढ़ाई होने लगी।

रामरखी स्वयं तो केवल तीसरी श्रेणी तक पढ़ी-लिखी थी, इस पर भी बाल्यकाल से ही वह ‘राम द्वारे’ कथा सुनने जाया करती थी। इससे वह अपने बच्चों को चरित्र सम्बन्धी शिक्षा तो दे ही सकती थी।

सत्य बोलना चाहिए; अपनी भूल पता लगने पर स्वीकार कर लेनी चाहिए; पराई वस्तु नहीं लेनी चाहिए; मेहनत और ईमानदारी से परमात्मा प्रसन्न होती है; इस प्रकार की शिक्षा वह फकीरचन्द और बिहारीलाल को देती रहती थी।

समय व्यतीत होते देर नहीं लगती, विशेष रूप में जब एक व्यक्ति किसी उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न हो। फकीरचन्द तीसरी श्रेणी में हुआ तो बिहारीलाल को भी स्कूल में भर्ती करा दिया गया। इस समय तक पुनः वस्तुएँ सस्ती होने लगी थीं और कम आय वालों का निर्वाह ठीक ढंग से होने लगा था। रामरखी दो-ढाई रुपये का काम नित्य करने लगी और घर का खर्चा निकाल उसके पास रुपया-आठ आने बचने लगा था।

यह सन् २५-२७ के दिन थे। उसने अपना गली वाला अँधेरा मकान छोड़कर ग्वाल मंडी में एक खुले मकान का एक भाग ले लिया था। वह अपनी गली में आती थी और परिचितों के घर से काम ले जाती थी।

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