उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
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एक दिन वह अपना बस्ता कंधे पर लटकाये हुए, घर को जा रहा था। गणित का मास्टर भी उधर ही जा रहा था। वह उसके साथ-साथ हुआ तो फकीरचन्द से पूछने लगा, ‘‘कहाँ रहते हो?’’
‘‘जी ! ग्वाल मंडी, अमृतधारा स्ट्रीट में।’’
‘‘तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?’’
‘‘पिता?...जी...जी वे नहीं हैं।’’
‘‘ओह ! कब देहान्त हुआ है उनका?’’
‘‘आठ वर्ष से ऊपर हो चुके हैं?’’
‘‘तो किसके पास रहते हो?’’
‘‘अपनी माँ के पास। वे मशीन पर कपड़े सी कर हमारा पालन-पोषण करती हैं।’’
‘‘तुम्हारी फीस तो मुआफ नहीं?’’
‘‘जी नहीं। मैंने माँ से कहा था कि यदि मैं हैडमास्टर जी को कहूँ तो फीस मुआफ हो जायगी। इस पर माँ ने कहा था, ‘बेटा भीख माँग कर जीना तो कुछ अच्छी बात नहीं। मैं तुम्हारी फीस दे सकती हूँ। तुमको चिन्ता नहीं करनी चाहिए।’’
‘‘तुम्हारी माँ के पास बहुत रुपया है क्या?’’
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