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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।

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जब वह इस उलझन में फँसा हुआ था, उसको एक दुकानदार से बात करने का अवसर मिला। उनकी गली के बाहर एक बिसाती की दुकान थी। दुकानदार का नाम था हेमराज। फकीरचन्द उससे साबुन, कलम, दवात इत्यादि आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने जाया करता था, जब से उसकी माँ ग्वाल मंडी में आई थी, तब से ही वह उसकी दुकान में वस्तुएँ खरीदा करता था। उसको स्मरण था कि हेमराज की दुकान पहिले बहुत छोटी-सी होती थी और उसमें फर्नीचर भी बहुत साधारण ही था। फकीरन्द ने हेमराज की दुकान को दिन-प्रतिदिन उन्नति करते देखा था और इन दिनों, जब उसने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की थी, हेमराज की दुकान में बहुत बढ़िया सागवान का फर्नीचर लगा था और साथ ही वह माल से ठसाठस भरी हुई थी।

परीक्षा फल के घोषित होने के दो-तीन दिन पश्चात् वह हेमराज की दुकान पर कपड़े धोने का साबुन लेने लगा। माँ ने उसको तीन रुपये दिये थे और पाँच सेर साबुन लाने के लिए कहा था। हेमराज स्वयं वहाँ बैठा था। दोपहर का समय होने के कारण, उस समय और ग्राहक नहीं थे। फकीरचन्द को देख हेमराज ने पूछ लिया, ‘‘फकीरचन्द ! पास हो गये हो?’’

‘‘जी हाँ।’’

‘‘कौन-सी डिवीजन में पास हुए हो?’’

‘‘फर्स्ट डिवीजन में।’’

‘‘तब तो कॉलेज में पढ़ोंगे?’’

‘‘यह जरूरी नहीं।’’

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