उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
|
8 पाठकों को प्रिय 270 पाठक हैं |
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
प्लेटफार्म पर पहुँचते ही गाड़ी आ गई। प्रायः सभी डिब्बे खचा-खच भरे हुए थे। माँ और बेटे गाड़ी में चढ़ने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु कहीं स्थान नहीं मिल रहा था। सवारियाँ जबरदस्ती गाड़ी में चढ़ने के लिए भीतर बैठी सवारियों से लड़ रही थीं।
बिस्तर उठाए हुए फकीरचन्द और उसके साथ-साथ हाथ में ट्रंक लटकाते हुए बिहारीलाल तथा उनके पीछे-पीछे हाथ में थैला लिए हुए उनकी माँ, गाड़ी को एक सिरे से दूसरे सिरे तक देख गये। किसी डिब्बे में पाँव रखने तक की भी जगह नहीं थी। इंजिन के पास फकीरचन्द को एक छोटा-सा डिब्बा दिखाई दिया। वह लगभग खाली था। उसमें केवल चार सवारियाँ बैठी थीं। बिहारीलाल ने उसको देखा तो कह दिया, ‘‘भापा ! इसमें जगह है।’’
फकीरचन्द ने डिब्बे को देखा। थर्ड क्लास ही था और उस पर किसी प्रकार का ‘रिजर्वेशन’ का लेबल लगा हुआ नहीं था। फकीरचन्द को विस्मय हुआ कि यह डिब्बा खाली क्यों रह गया है, जबकि और डिब्बे लदे-फदे हैं। उसने माँ से कहा, ‘‘माँ ! दरवाजा खोलो तो।’’
बिस्तर उठाये होने के कारण उसके दोनों हाथ रुके हुए थे। बिहारीलाल ने दरवाजा खोलने का यत्न किया तो पता चला कि उसको चाबी लगी है। भीतर बैठे एक आदमी ने आवाज दे दी, ताली लगी है।’’
‘‘क्यों?’’ बिहारीलाल ने पूछा।
भीतर बैठे आदमी ने मुख मोड़ लिया। एक लड़का खिड़की के पास बैठा था। उसने कह दिया, ‘‘डिब्बा रिजर्व है।’’
|