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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


इस पर फकीरचन्द ने डिब्बे को पुनः बाहर से देखा। कुछ लिखा नहीं था। उसको सन्देह हो गया था कि यह झूठ बोल रहा है। उसने एक क्षण मन में विचार किया और फिर खिड़की में से बिस्तर भीतर फेंकने का यत्न किया। बिस्तर बड़ा था, इस कारण खिड़की में से भीतर जा नहीं सका। इसपर बिहारीलाल ने अपना छोटा सा ट्रंक खिड़की में से भीतर कर, माँ को कहा, ‘‘माँ ! तुम लपक कर चढ़ जाओ।’’

भीतर बैठे लड़के ने ट्रंक उठाकर बाहर फेंकने का यत्न किया। इस पर फकीरचन्द ने बिस्तर बाहर प्लेटफार्म पर रख दिया और लपककर खिड़की में से भीतर जा पहुँचा। उसने लड़के को एक ओर धकेल कर ट्रंक को खाली स्थान पर रख दिया और बिहारीलाल को हाथ पकड़ कर भीतर कर लिया। इसके बाद उसने माँ को कहा, ‘‘माँ ! बिस्तर खोल दो और एक-एक करके सामान पकड़ा दो।’’

माँ समझ गई कि बिस्तर खिड़की में से भीतर नहीं जा सकेगा। इस कारण उसने बिस्तर प्लेटफार्म पर ही खोल दिया।

‘‘ओ लड़के !’’ भीतर बैठे आदमी ने फकीरचन्द को कहा, ‘‘बाबू अभी आकर उतार देगा। क्यों सामान खोल रहे हो?’’

फकीरचन्द ने उस आदमी को घूर कर देखा तो वह चुप कर गया। फकीरचन्द ने कहा, ‘‘जाओ बाबू को बुला लाओ।’’

‘‘वह तो करूँगा ही।’’

भीतर वालों के साथ एक स्त्री भी थी। उसने अपने आदमी को कहा, ‘‘फजूल का झगड़ा करते हो, आने दो न?’’

इतने में माँ ने बिस्तर खोल दिया। वह सारा सामान उठा-उठाकर बिहारीलाल को पकड़ाने लग गई। बिहारीलाल उसको पकड़-पकड़कर भीतर, ऊपर तख्ते पर रखने लग गया। इस पर भीतर बैठे आदमी ने कहा, ‘‘देखो, हमारा और अपना सामान मिला न देना।’’

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