उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
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पट्टे के कागज़ात पूर्ण होते ही फकीरचन्द ने कम्पनी की नौकरी छोड़ दी और जाने की तैयारी करने लगा। नौकरी छोड़ने के लिए एक मास का नोटिस देना पड़ा और उस काल में उसने सर गंगाराम के पुस्तकालय में जाकर खेती-बाड़ी के विषय में बहुत-सी पुस्तकें पढ़ डालीं।
फकीरचन्द की माँ ने पट्टे पर हस्ताक्षर तो कर दिये, परन्तु अपने मस्तिष्क पर बहुत जोर देने पर भी, वह इस कार्य में सफलता की आशा नहीं कर सकी। इस कारण वह फकीरचन्द को भी उत्साहित नहीं कर सकी। जिस दिन उसने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दिया और माँ को बताया, तो वह सन्न रह गई। वह विचार करती थी कि जब पट्टे में ही, काम आरम्भ करने में दो वर्ष अवधि मिली हुई है, तो इतनी जल्दी मचाने की क्या आवश्यकता थी? उसने कहा, ‘‘फकीर ! तुम अभी बहुत छोटे हो। तुम्हारा अनुभव भी बहुत ही कम है। इस कारण इतने कठिन काम के लिए मैं तुमको अपने से पृथक् नहीं कर सकती।’’
फकीरचन्द माँ की बात सुन भौंचक्क उसका मुख देखता रह गया। वह माँ की आज्ञा का उल्लंघन करना नहीं चाहता था। साथ ही वह समझता था कि माँ स्नेहवश उसकी उन्नति में बाधक बन रही है।
उसने कहा, ‘‘माँ ! तुम जाने की आज्ञा नहीं दोगी, तो मैं नहीं जाऊँगा। इस पर भी यह समझ लो कि यह मेरे साथ और तुम्हारे साथ अन्याय हो जाएगा। वह स्थान, जहाँ मैं जाना चाहता हूँ, एक बिना छीले-छाँटे तथा बिना पालिश किये हीरे के समान है। इस समय वहाँ कुछ नहीं, परन्तु वह दस वर्ष में कामधेनु बन जायगा, इसमें किंचित भी सन्देश नहीं। माँ ! मुझे जाने दो। बहुत यत्न से और भगवान् की अपार कृपा से यह अवसर मिला है। इसको व्यर्थ मत जाने दो।’’
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