उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘महाराज ! मुझको पूर्ण विश्वास है कि मैं इस कार्य में सफल रहूँगा। इसपर भी यदि दो वर्ष तक काम न कर सकूँ, तो पट्टा वापिस कर दूँगा।’’
‘‘कौन-सी भूमि चाहते हो?’’
फकीरचन्द मौके पर जाकर भूमि देख आया था। इस कारण उसने मानचित्र निकालकर एक स्थान पर हाथ रख दिया। मानचित्र पर किते बने थे और उन पर नम्बर लिखे थे। यह तीन नम्बर का किता था। राजा साहब ने नम्बर पढ़कर मैनेजर से पूछा, ‘‘क्यों मैनेजर साहब ! यह कैसी भूमि है?’’
‘‘यह भूमि सबसे अच्छी है, महाराज !’’
‘‘ठीक तो है। जो पहिले आयगा, वह अच्छी वस्तु छाँटकर लेगा। हम समझते हैं कि पट्टा इसकी माँ के नाम कर दिया जाय और उसको रजिस्ट्री के कागजात हस्ताक्षरों के लिए भेज दिये जाएँ। उस पट्टे पर एक शर्त लिख दो कि यदि काम दो वर्ष के भीतर आरम्भ न हुआ, तो पट्टा रद्द समझा जायगा।’’
फकीरचन्द ने अपनी माँ का नाम और पता बता दिया। पट्टे के कागज़ात तैयार कर, रजिस्ट्री कराकर उस पते पर भेज दिये गये।
फकीरचन्द उसकी नकल लेकर स्वयं लाहौर जा पहुँचा।
इस प्रकार एक क्लर्क का लड़का, और स्वयं क्लर्क, जमींदार बन गया। रजिस्ट्री लिफाफे में पट्टे के कागज़ात आये तो फकीरचन्द ने माँ से कहकर हस्ताक्षर करा, उन्हें वापिस झाँसी भेज दिया।
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