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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


जब सुमित्रा गजराज को नमस्ते करने के लिए लॉन में आती तो वह पूछ लेता, ‘‘कस्तूरी, कहाँ है?’’

‘‘अभी सोया ही होगा।’’

‘‘उसको भी तो समय पर उठना चाहिए न?’’

‘‘फूफाजी, उसको उठाऊँ?’’

‘‘हाँ, जाकर कहो कि मैं बुला रहा हूँ।’’

‘‘सुमित्रा भागकर कस्तूरी के कमरे में जाती और उसकी बाँह पकड़कर, बिस्तर से बाहर घसीटती हुई लॉन में ला, उसके पिता के सामने खड़ा कर देती।

गजराज कहता, ‘‘कस्तूरी, कुछ तो लज्जा का अनुभव करो। तुमसे भी छोटे बच्चे उठकर, सन्ध्योपासना कर तैयार हो जाते हैं और तुम अभी तक सो रहे हो।’’

‘‘अभी तो छः ही बजे हैं पिताजी!’’

‘‘ओ छः के बच्चे! दूसरों के पास भी घड़ी है। उनकी घड़ी में भी छः ही बजे हैं। फिर भी वे साढ़े चार बजे उठते हैं।’’

धीरे-धीरे उस घर में इसका प्रभाव हो रहा था।।

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