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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ५ :

मोहिनी और उसके बच्चों को लक्ष्मी के घर आये पन्द्रह दिन हो चुके थे। चरणदास प्रायः नित्य आता था, परन्तु मध्याह्नोत्तर चार बजे। लक्ष्मी जब उसको भोजन के समय आने के लिए कहती तो वह कह देता, ‘‘बहिन! बहुत हठ न करो। मेरा मन नहीं मानता।’’

गजराज पूछता रहता था, ‘‘चरणदास आता है अथवा नहीं? चाय आदि कभी पीता है कि नहीं।’’

लक्ष्मी जब उसको वस्तु-स्थिति बताती तो वह कहता, ‘‘बहुत हठी व्यक्ति है।’’

‘‘हठी नहीं, यह तो संस्कारों का फल है। बहिन के घर का नहीं खाना चाहिए, यह उसके रोम-रोम में व्याप्त है। साथ ही वह आजकल परीक्षा की तैयारी कर रहा है।’’

‘‘तब तो निश्चय ही उसको अपने उस अँधेरे मकान को छोड़कर यहाँ आ जाना चाहिए।’’

‘‘मैंने तो कहा था, किन्तु वह मानता ही नहीं।’’

‘‘अच्छा, मैं किसी समय बात करूँगा।’’

‘‘वह तो कल अपने बच्चों को वापस अपने घर ले जाने की बात कर रहा है।’’

‘‘क्यों?’’

लक्ष्मी ने मुस्कराकर पूछ लिया, ‘‘यदि आपकी पत्नी आपसे पृथक् रहने लगे तो आप कितने दिन तक सन्तोष कर सकते हैं?’’

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