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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘ओह!’’ सुमित्रा ने कहा–‘‘कल छुट्टी है, काम तो कल भी हो जायगा। आज तो हम अपनी बहिन के साथ खेलेंगी।’’

‘‘नो! नो! नो!! निकल जाओ यहाँ से।’’

इस समय कस्तूरी, जो सुमित्रा और सुभद्रा को ढूँढ़ता हुआ वहाँ आ गया था, यमुना की ‘नो, नो’ सुनकर पूछने लगा, ‘‘इसका मतलब?’’

‘‘देखो भैया! ये लड़कियाँ कहती हैं कि स्कूल का काम कल करना, आज हमारे साथ खेलो।’’

‘‘हाँ, ठीक ही तो कह रही हैं, मैं भी यही कहने के लिए आया हूँ।’’ यह कहते हुए कस्तूरी ने यमुना की कापी बन्द कर दी।

यमुना कुर्सी से उठकर शोर मचाने लगी, ‘‘मम्मी! मम्मी!!’’

कस्तूरी ने यमुना की कुर्सी पर बैठते हुए कहा, ‘‘मम्मी अपने कमरे में हैं। शिकायत करनी हो तो वहाँ चली जाओ।’’

यमुना ने जब देखा कि वहाँ बैठने को भी स्थान नहीं तो सिर ऊँचा कर माँ के कमरे की ओर चल दी। कस्तूरी को हँसी आ गई। फिर तो तीनों खिलखिलाकर हँस पड़े।

सबसे पहले सुमित्रा के ध्यान में आया कि उन्हें यमुना की हँसी नहीं उड़ानी चाहिये। इस कारण वह कस्तूरी से बोली, ‘‘भापा! इससे तुम्हारी मम्मी नाराज़ हो जायँगी।’’

‘‘क्यों ? वह नाराज़ क्यों होंगी?’’

‘‘हमने यमुना की पढ़ाई में बाधा डाली है न, इसलिये।’’

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