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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘पढ़ क्या रही थी, कुछ भी तो नहीं। सुलेख लिखना भी कोई पढाई है?’’

सुमित्रा जानती थी कि यह पढ़ाई न सही पर स्कूल का काम तो होता है। इस कारण वह वहाँ से निकलकर अपनी माँ और बूआ के कमरे में चली गई। कस्तूरी ने सुभद्रा से कहा, ‘‘मम्मी जब पूछेंगी तो मैं जो कहूँ, तुम भी उसी बात को ठीक बताना।’’

सुभद्रा को विदित नहीं था कि कस्तूरी क्या कहने वाला है। सुमित्रा अभी गई ही थी कि यमुना अपनी माँ के साथ वहाँ आ गई। आते ही उसने पूछ लिया, ‘‘कस्तूरी क्या हुआ है?’’

‘‘हुआ कुछ नहीं मम्मी! यह सुलेख लिख रही थी और वह गलत था। मैंने कहा कि ठीक कर दूँ तो बोली कि नहीं, ठीक है। मैं ठीक करने लगा तो यह भाग गई।’’

‘‘यह बात नहीं मम्मी! यह और एक अन्य लड़की यहाँ आई और मुझे ‘डिस्टर्ब’ करने लगी। वे मेरे साथ खेलना चाहती थीं किन्तु मैं उनके साथ खेलना नहीं चाहती थी।’’

‘‘पर यमुना! ये तो तुम्हारी बहिनें हैं। तुम्हारे साथ खेलना चाहती हैं तो तुम काम कल कर लेना। आज इनको कोठी दिखाओ। जाओ, जाकर इनको रेडियोग्राम सुनाओ।’’

‘‘मैं तो इनको बहिन नहीं बनाना चाहती।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इनके कपड़े गन्दे हैं।’’

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