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1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

लड़ाई के दिनों में कभी-कभी दिल्लीवासियों का अच्छा मनोरंजन हो जाता था। वे देखते कि बागी सिपाहियों का नेतृत्व कोई बहादुर औरत कर रही है। ‘दिल्ली की सुंदरी’ नाम से मशहूर एक जवान लड़की हमेशा सबसे आगे रहती। रामपुर की दो बूढ़ी औरतों ने भी लड़ाई का नेतृत्व किया था। इस ढलती उम्र में बूढ़ी औरतों की बहादुरी देखकर सेनानी सैयद मुबारकशाह चकित हो जाता था।बागी सिपाहियों के हमले निरंतर बढ़ते चले जा रहे थे। यह देखकर विल्सन हैरान हुआ। उसने एक जासूस शहर में भेज दिया। जासूस की खबर सुनकर अंग्रेज सेनानी भौंचक्का रह गया। बागी सिपाहियों ने गोला-बारुद के अलावा उखली तोपों का निर्माण भी शुरू कर दिया था। उन्होंने पुरानी तोपखाना भट्ठी की जगह नयी भट्ठी शुरू की थी। उन्होंने राकेट भी तैयार किये थे। बागी सिपाहियों की तैयारी देखकर विल्सन को आश्चर्य हुआ। जिन्हें वह जंगली समझ रहा था, उन लोगों ने यह हुनर कहां सीखी? यह बात उसे समझ में नहीं आ रही थी। आखिर आदमी संकट आने पर अपना रास्ता खुद ढूंढ़ लेता है।

दिल्ली की मुहिम धीमी पड़ गयी थी। बादशाह ने जान लिया था कि फिरंगियों के तेज आक्रमण का सामना हमारे सिपाही नहीं कर सकते। वह दिल्ली से भागने के बारे में सोचने लगा। बागी सिपाहियों के सरदारों को खबर मिली। उन्हें मालूम हुआ कि बादशाह जल्द ही लाल किला छोड़ने जा रहा है। वे बादशाह के पास दौड़े-दौड़े गये और कहा, ‘‘बादशाह हुजूर ! आप दिल्ली के शहंशाह हैं। आपका बरताव शहंशाह की तरह होना चाहिए। यहां आप उल्टे गुनहगार की तरह मुंह छिपाकर भागना चाहते हैं। लाल किला छोड़कर आप कहां जायेंगे? कंपनी सरकार आपको ढूंढ़ लेगी और कैदी बना देगी। सारी उम्र बदनामी आपका पीछा करेगी। खुद्दार आदमी के लिए बदनामी मौत के समान है। हम दिल्लीवासी देखना चाहते हैं कि आखिर तक बादशाह ने तलवार चलायी। इस जहान को खुदा हाफिज करने से पहले आपका नाम रोशन हो जाये। ऐसी कोई बहादुरी दिखा दें।’’

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