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1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

इधर चांदनी चौक पर आम लोगों के सामने बादशाह के सभी लड़कों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। छोटे नवाब मिर्जा जवानबख्त को बख्श दिया गया। दिल्ली में लश्करी कानून लागू किया गया। बहुत दिनों तक फांसी का सिलसिला जारी रहा। अनगिनत बेगुनाह लोगों की हत्या हुई। कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने महसूस किया कि यह ज्यादती हो रही है। जॉन लॉरेंस ने गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को लिखा— आजकल दिल्ली में आतंक फैला हुआ है। जो कुछ हो रहा है। वह बिलकुल बेतुका है। मैं मानता हूं कि गुनहगार लोगों को सजा होनी चाहिए। लेकिन हम हर रोज हजारों बेगुनाह लोगों को फांसी पर चढ़ाकर क्या हासिल करेंगे? सिर्फ बदले की खुशी ! इससे जनता और सरकार का फासला बढ़ जायेगा। इससे भविष्य में बुरा असर हो सकता है।’’

 कैनिंग ने यह पत्र फाड़ डाला। दिल्ली की जनता की क्रूर हत्याएं होती रहीं। 1858 के फरवरी में लश्करी कानून वापस लिया गया। इस कानून को हटाये जाने के पूर्व कुछ ही घंटों में चार सौ दिल्लीवासियों को गोलियों से भून दिया गया। दिल्ली के सेनानी जनरल पेनी ने कहा, ‘‘अब थोड़ा-बहुत हिसाब पूरा हो गया है।’’

राजधानी का शाही खजाना लूटते समय अंग्रेज बेहया हो गये थे। खानदानी रईस होने की डींग मारने वाले अंग्रेजों ने भारी लूट मचायी। लाल किले का खजाना खाली हो गया। लाल किले की छत और दीवारें बच पायीं। लाल किला अब सुनसान हो गया। 1857 के बाद इतिहास के पन्नों पर हत्याएं, फांसी और खून के धब्बे लग गये। यह खून के धब्बे कुछ देसी सिपाहियों एवं कुछ साधारण लोगों के थे; तो कुछ अंग्रेजों के खून से भी भरे हुए थे। दिसंबर का महीना शुरू हो गया था। दिल्ली के आपपास के इलाकों में अंग्रेजों ने फिर कब्जा कर लिया था। कंपनी सरकार को शांति नहीं मिल रही थी। अवध की लड़ाई भी खत्म नहीं हुई थी।

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