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1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

कानपुर के आसपास यह किस्सा हरेक की जबान से सुनने को मिला। पिछले सौ सालों में कम्पनी ने अपने सूबेदारों और राजाओं की रियासतें हथियाकर सबको सामंती प्रभु बना दिया था। लेकिन कंपनी ने अब तक उनके सिंहासन को हाथ नहीं लगाया था। अब महौल पूरी तरह बदल चुका था। कंपनी ने रियासतों का राज समाप्त करने का एक बहाना ढूंढ़ लिया। धीरे-धीरे पूरा इलाका अपने कब्जे में लेकर कंपनी आगे बढ़ रही थी।

रियासतदारों के साथ उनकी प्रजा भी कंपनी के इरादों पर संदेह करने लगी। उन लोगों के मन में यह डर पनपने लगा कि हमारा स्वराज अब खतरे में पड़ गया है। घमंडी अफसरों ने इस बदलते माहौल को नजरअंदाज किया था। जनमानस में विदेशी राज को प्रति विद्रोह बढ़ रहा था। कंपनी को अपनी सेना पर पूरा भरोसा था। उसे मालूम हो गया था कि कोई भी रियासत कंपनी से मुकाबला नहीं कर सकती। कंपनी के पास तीन लाख सिपाहियों की फौज तैयार थी। इतनी ताकत अब किसी राजा को पास कहाँ बची थी? कंपनी के इन तीन लाख सिपाहियों में अंग्रेज सिपाहियों की संख्या सिर्फ पंद्रह हजार थी। कंपनी को अपने अनुभवों से मालूम हो गया था कि बाकी सभी देशी सिपाहियों पर उनका रौब चलता है। कंपनी सरकार को यह मालूम होने में बहुत समय लगा कि देसी सिपाही अब उनके प्रति विफर गये हैं।

प्रजा भी जान गयी थी कि हमारा स्वराज खतरे में पड़ गया है। देसी सिपाहियों में स्वधर्म पर मंडरा रहे संकट के विचारों से असंतोष बढ़ रहा था। कंपनी अब तक पुरानी ‘ब्राउन बेस’ बंदूकों का प्रयोग कर रही थी। 1857 के शुरुआत से ही लश्करी (सैनिक) थाने पर नयी बंदूकें मंगायी जाने लगीं। इन नयी बंदूकों की खासियत यह थी कि वह दूर का निशाना लगा सकती थीं। इंग्लैंड के एनफिल्ड में तैयार होने के कारण उसी नाम से बंदूक का नाम मशहूर हो गया था। हिंदुस्तान में दमदम और अंबाला शहर में भी इस बंदूक का निर्माण कार्य शुरू किया गया। लेकिन उसका पुराना नाम ‘एनफिल्ड’ ही बरकरार रहा।

इस एनफिल्ड बंदूक में कारतूस भरने के लिए उसके ऊपरी हिस्से पर चरबी लगायी जाती थी और यह चरबी दांतों से निकाली जाती थी। कभी-कभी चरबी का टुकड़ा मुँह में आ जाता था। देसी सिपाहियों में यह बात फैल गयी कि यह चरबी गाय अथवा सुअर से निकाली जाती है। फिर तो सारा माहौल ही बदल गया। सिपाहियों में असंतोष की ज्वाला भड़क उठी। हिंदुओं में गाय पूजनीय होती है, उसके विपरीत मुस्लिमों में सूअर नापाक।

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