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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


दयानाथ कुछ लज्जित होकर बोले–इतने पर भी केवल चन्द्रहार न होने से वहाँ हाय-तोबा मच गयी।

रमानाथ–उस हाय-तोबा से हमारी हानि हो सकती थी। जब इतना करने पर भी हाय-तोबा मच गयी, तो मतलब भी तो न पूरा हुआ। उधर बदनामी हुई, इधर यह आफत सिर पर आयी। मैं नहीं दिखाना चाहता कि हम इतने फटेहाल हैं। चोरी हो जाने पर तो सब्र करना ही पड़ेगा।

दयानाथ चुप हो गये। उस आवेश में रमा ने उन्हें खूब खरी–खरी सुनायी और वह चुपचाप सुनते रहे। आखिर जब न सुना गया, तो उठकर पुस्तकालय चले गये। यह उनका नित्य का नियम था। जब तक दो-चार पत्रिकाएँ न पढ़ लें, उन्हें खाना न हज़म होता था। उसी सुरक्षित गढ़ी में पहुँचकर घर की चिन्ताओं और बाधाओं से उनकी जान बचती थी।

रमा भी वहाँ से उठा, पर जालपा के पास न जाकर अपने कमरे में गया। उसका कोई कमरा अलग तो था नहीं, एक ही मर्दाना कमरा था, इसी में दयानाथ अपने दोस्तों से गप-शप करते, दोनों लड़के पढ़ते और रमा मित्रों के साथ शतरंज खेलता। रमा कमरे में पहुँचा, तो दोनों लड़के ताश खेल रहे थे। गोपी का तेरहवाँ साल था, विश्वम्भर का नवाँ। दोनों रमा से थरथर काँपते थे। रमा खुद खूब ताश और शतरंज खेलता, पर भाइयों को खेलते देखकर उसके हाथ में खुजली होने लगती थी। खुद चाहे दिनभर सैर-सपाटे किया करें; मगर क्या मजाल कि भाई कहीं घूमने निकल जायँ। दयानाथ खुद लड़कों को कभी न मारते थे। अवसर मिलता, तो उनके साथ खेलते थे। उन्हें कनकौवे उड़ाते देखकर उनकी बाल-प्रकृति सजग हो जाती थी। दो-चार पेंच लड़ा देते। बच्चों के साथ कभी-कभी गुल्ली डंडा भी खेलते थे। इसलिए लड़के जितना रमा से डरते उतना ही पिता से प्रेम करते थे।

रमा को देखते ही लड़कों ने ताश को टाट के नीचे छिपा दिया और पढ़ने लगे। सिर झुकाये चपत की प्रतीक्षा कर रहे थे; पर रमानाथ ने चपत नहीं लगायी, मोढ़े पर बैठकर गोपीनाथ से बोला–तुमने भंग की दूकान देखी है, न नुक्कड़ पर?

गोपीनाथ प्रसन्न होकर बोला–हाँ, देखी क्यों नहीं !

‘जाकर चार पैसे का माजून ले लो। दौड़े हुए जाना। हाँ, हलवाई की दूकान से आध सेर मिठाई भी लेते आना। यह रुपया लो।’

कोई पन्द्रह मिनट में रमा ये दोनों चीजें ले, जालपा के कमरे की ओर चला।

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