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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


अगले दिन आदिनाथ ने दीक्षा ले ली। समस्त वस्त्राभरण और नगर त्याग कर वे निर्ग्रन्थ विहार कर गये। और भरत, चुप मन, जययात्रा पर चल दिये।

पृथिवी के छहों खण्डों पर विजय स्थापित कर और बहुभाँति के मणिमुक्ता, हय-गज और कन्या सुन्दरियों की भेंट से युक्त भरत धूमधाम के साथ नगर को लौट कर आये।

किन्तु जब भरत नगर में प्रवेश करने लगे तब विचित्र घटना हुई। चक्रवर्ती का शासन–चक्र नगर के भीतर प्रविष्ट नहीं होता था। प्रत्येक द्वार से नगर में प्रवेश करने के यत्न किये, शासन-चक्र ने साथ न दिया। इस पर लोगों को बहुत अचरज हुआ। राजगुरु के शरण में जाकर इसके कारण के विषय में उन्होंने जिज्ञासा की। गुरु ने बताया कि इस नगर में एक व्यक्ति जो अविजित है, उस पर जब तक विजय न पायी जाय तब तक चक्रवर्तित्व अखण्ड नहीं होता। और उस समय तक यह शासन-चक्र नगर में प्रवेश न करेगा। राजगुरु ने यह भी बताया कि अभी तक जिन पर किसी ने विजय नहीं पाई है, ऐसे व्यक्ति राजकुमार बाहुबली हैं।

भरत ने पूछा–गुरुदेव, तब क्या बाहुबली से मुझे युद्ध करना होगा?

राजगुरुने कहा–राजन् तब तक चक्रवर्तित्व असिद्ध है।

भरत ने कहा–किन्तु मैं चक्रवर्ती नहीं होना चाहता।

राजगुरु ने कहा–राजर्षि, यह आपकी व्यक्तिगत, इच्छा-अनिच्छा का प्रश्न नहीं है। यह राजकारण का प्रश्न है।

भरत ने कहा–गुरुदेव, क्या भाई से भाई को लड़ना होगा?

गुरुदेव ने कहा–राजन्, राजकारण गहन है। राजकारण-धर्मी का कौन भाई है, कौन भाई नहीं है?

भरत नतमस्तक हुए।

पाँच युद्धों-द्वारा शक्ति–परीक्षण का निश्चय हुआ। दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध, आदि, और अन्त में मल्लयुद्ध।

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