कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
किन्तु बाहुबली भक्तों और उनकी पूजा से विमुख होकर घोर-से-घोरतर निर्जन दुष्प्राप्य एकान्त में चले जाते थे। एक स्थान पर एक बार अडिग, एकस्थ, एकाकी इतने काल तक खड़े रहे कि उनके सहारे वाल्मीक जम गये, बेलें उठकर शरीर को लपटने लगीं। उन वाल्मीकों में कीड़े-मकोड़े ने घर बना लिये।
इस कामदेवोपम सर्वांग-सुन्दर बलिष्ठ पुरुष ने निदारूण कायक्लेश में वर्ष के–वर्ष बिता डाले। लोग देखकर हा-हा खाते थे और निस्तब्ध रह जाते थे। उसकी स्पृहणीय काया मिट्टी बनी जा रही थी। स्त्रियाँ उस निमीलितनेत्र, मग्न-मौन, शिला की भाँति खड़े हुए पुरुष-पुंगव के चरणों को धो-धोकर वह पानी आँखों लगाती थीं। उसके चरणों के पास की मिट्टी औषधि समझी जाती थी।
पर वह सब ओर से विलग अनपेक्ष, बन्द आँख, बन्द मुख, मलिन–देह, कृश गात, तपस्या में लीन था।
यह था, पर कैवल्य उसे नहीं प्राप्त हुआ, नहीं हुआ। ज्ञानी लोग इस पर किंविमूढ़ थे।
जीवन्मुक्त भगवान आदिनाथ से लोगों ने पूछा– भगवान दीर्घ–काल से कुमार बाहुबली अतिशय कठोर तपश्चर्या कह रहे हैं। आपको ज्ञात तो है?
भगवान बोले–हाँ ज्ञात है।
‘उससे हमारा हृदय काँपता है। आप उन्हें इससे विरक्त करेंगे?’
भगवान ने कहा– नहीं। एक निष्ठा के साथ जो किया जाता है उससे किसी का अपकार नहीं होता।
लोगों ने पूछा–किन्तु भगवान, कुमार बाहुबली को अब तक कैवल्य सिद्ध क्यों नहीं हो सकी?
भगवान ने कहा–यह तुम पीछे जानोगे।
भरत राज्यशासन चला रहे थे। प्रथम चक्रवर्ती भरत के ऐश्वर्य का पार न था। मणि–माणिक-मुक्ता की दीप्ति से उनका परिच्छेद जगमग होता था। उनके नाम का आतंक दिग्दिगन्त में छाया था सब प्रकार के सुख–विलास और आमोद-प्रमोद के साधन उनके संकेत पर प्रस्तुत थे। और वे अपने निष्कण्टक चक्रवर्तित्व का उपभोग कर रहे थे।
इसको भी वर्ष-के-वर्ष हो गये।
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