कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
एक दिन भगवान आदिनाथ के पास पहुँच कर भरत ने कहा–भगवान, भाई बाहुबली को यह अधिकार मिला कि वह मुझको छोड़कर और राज्य को छोडकर स्वाधीन रहें और सत्य को पाएँ। जो मेरे अधिकार में नहीं आता था, जो बाहुबली का हो गया था, उस राज्य को लेने को तनिक भी अवकाश नहीं छोड़ा गया। मुझे शिकायत नहीं है। लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ, क्या मैं अब दीक्षा नहीं ले सकता?
भगवान ने कहा–ले सकते हो। अगर सत्य की खोज और सत्य की उपलब्धि राजत्व के द्वारा तुम्हारे निकट अगम्य बन गई है, तो तुम उसे अवश्य तज सकते हो। और मैं कह सकता हूँ–अगम्य बन जाना भी चाहिए। तुम पचास वर्ष के ऊपर के हुए न?’
भरत संतुष्टचित्त महलों को लौट आये। और दो दिन बाद घोषणा हो गई कि चक्रवर्ती अब दीक्षा लेंगे।
नगरवासियों में विफलता छा गई। साम्राज्य के प्रान्त-प्रान्त से विरोध में अनुनय-प्रार्थनायें आईं। किन्तु भरत ने एक प्रतिनिधि-सभा को अपना उत्तरधिकार देकर दीक्षा ले ली।
और राज्याभरण उतारते-उतारते मुहूर्त के अन्तर में उन्हें निर्मल कैवल्य की उपलब्धि हो गई।
लोगों ने क्लिष्ट भाव से भगवान आदिनाथ की शरण में जाकर पूछा भगवान, यह क्या बात है? कुमार बाहुबली ने कितना घोर कार्योत्सर्ग झेला, कैसा दुर्द्धर्ष तपश्चरण किया, आरम्भ से उन्होंने सब सुखों का निसर्जन किया, किन्तु उनको कैवल्य प्राप्त नहीं हुआ। और चक्रवर्ती भरत ने जीवन के अधिक भाग में ऐश्वर्य ही भोगा, प्राचुर्य ही देखा, विलास पाया। उनको राज-चिन्ह उतारते-उतारते परम ज्ञान की प्राप्ति हो गई! भगवान, बताइए यह कैसे हुआ? हमारा चित्त भ्रान्त है।
भगवान ने सदय भाव से कहा–बाहुबली अविजित है। यह वह बेचारा नहीं भूल सका है।
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