कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
काकी
(आपका जन्म १८९५ ई. में हुआ। आपने पहले-पहल कहानियाँ १९२८ ई. में लिखना प्रारम्भ की। आप प्रधानताः कवि हैं और आपका जन्म भी एक ऐसे परिवार में हुआ है जिसे श्री मैथिलीशरण गुप्त जैसे प्रथम श्रेणी के कवि को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त है। कहानी लेखक भी आप कवि की ही भाँति सफल हैं।
इसके अतिरिक्त आपने उपन्यास भी लिखे हैं। आपके निबन्धों का भी एक संग्रह प्रकाशित हो चुका है। मार्मिक लघु-कथा लिखने में आप विशेष सिद्धहस्त हैं। आपकी कहानियों की सादगी और उनकी मार्मिकता ही बरबस पाठक को अपनी ओर खींचती है।
आपकी कविताओं के संग्रह ‘अंतिम आकांक्षा, ‘पुण्यपर्व, आदि; उपन्यास ‘गोद, ‘नारी’ आदि, निबंध-संग्रह ‘झूठ-सच’ प्रकाशित हुए हैं।)
उस दिन बड़े सबेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा–घर-भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी काकी–उमा-एक कम्बल पर नीचे-से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि–शयन कर रही है, और घर के सब लोग उसे घेर कर बड़े करुण-स्वर में विलाप कर रहे हैं।
लोग जब उमा को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे तब श्यामू ने बड़ा उपद्रव मचाया। लोगों के हाथों से छूटकर वह उमा के ऊपर जा गिरा। बोला- काकी तो सो रही हैं। उन्हें इस तरह उठा कर कहाँ लिये जा रहे हो? मैं न ले जाने दूँगा।
लोगों ने बड़ी कठिनता से उसे हटा पाया। काकी के अग्नि-संस्कार में भी वह न जा सका। एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही संभाले रही।
यद्यपि बुद्धिमान गुरुजनों ने उसे विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहाँ गई है, परन्तु असत्य के आवरण में सत्य बहुत समय तक छिपा न रह सका। आस-पास के अन्य अबोध बालकों के मुँह से ही वह प्रकट हो गया। यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं, ऊपर राम के यहाँ गई हैं। काकी के लिए कई दिन तक लगातार रोते-रोते उसका रुदन तो क्रमशः शान्त हो गया, परन्तु शोक शान्त न हो सका। जिस तरह बर्षा के अनन्तर एक ही दो दिन में पृथ्वी के ऊपर का पानी अगोचर हो जाता है, परन्तु बहुत भीतर तक उसकी आर्द्रता बहुत दिन तक रहती है उसी प्रकार वह शोक उसके अन्तस्तल में जाकर बस गया। वह प्रायः अकेला बैठा-बैठा शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता।
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