कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
264 पाठक हैं |
गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोच कर उसका हृदय एकदम खिल उठा। विश्वेश्वर के पास जाकर बोला–काका, मुझे एक पतंग मँगा दो।
पत्नी की मृत्यु के बाद से विश्वेश्वर बहुत अन्यमनस्क–से रहते थे। ‘अच्छा मँगा दूगा’–कहकर वह उदास भाव से बाहर चले गये।
श्यामू पतंग के लिए बहुत उत्कण्ठित हो उठा। वह अपनी इच्छा किसी तरह न रोक सका। एक जगह खूँटी पर विश्वेश्वर का कोट टँगा हुआ था। इधर-उधर देखकर उसने उसके पास एक स्टूल सरकाकर रक्खा और ऊपर चढ़कर कोट की जेबें टटोलीं। उनमें से एक चवन्नी का आविष्कार करके वह तुरन्त वहाँ से भाग गया।
सुखिया दासी का लड़का-भोला-शयामू का समवयस्क साथी था। श्यामू ने उसे चवन्नी देकर कहा–अपनी जीजी से कहकर गुपचुप एक पतंग और डोर मँगा दो। देखो, खूब अकेले में लाना, कोई जान न पावे।
पतंग आई। एक अँधेरे घर में उसमें डोर बाँधी जाने लगी। शयामू ने धीरे से कहा–भोला, किसी से न कहे तो एक बात कहूँ।
भोला ने सिर हिलाकर कहा– नहीं, किसी से न कहूँगा।
श्यामू ने रहस्य खोला। कहा– मैं यह पतंग ऊपर राम के यहाँ भेजूँगा।
इसे पकड़कर काकी नीचे उतरेगी। मैं लिखना नहीं जानता। नहीं तो इस पर उनका नाम लिख देता।
भोला श्यामू से अधिक समझदार था। उसने कहा–बात तो बड़ी अच्छी सोची, परन्तु एक कठिनता है। यह डोर पतली है। इसे पकड़ कर काकी उतर नहीं सकती। इसके टूट जाने का डर है। पतंग में मोटी रस्सी हो, तो ठीक हो जाय।
श्यामू गम्भीर हो गया। मतलब यह–बात लाख रुपये की सुनाई गई है। परन्तु कठिनता यह थी की मोटी रस्सी कैसे मँगाई जाय। पास में दाम हैं नहीं और घर के जो आदमी उसकी काकी को बिना दया-माया के जला आये हैं, वे उसे इस काम के लिए कुछ नहीं देंगे। उस दिन श्यामू को चिन्ता के मारे बड़ी रात तक नींद नहीं आई।
|