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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


पहले दिन की ही तरकीब से दूसरे दिन फिर उसने विश्वेश्वर के कोट से एक रुपया निकाला। ले जाकर भोला को दिया और बोला–देख भोला, किसी को मालूम न होने पावे। अच्छी-अच्छी दो रस्सियाँ मँगा दे। एक रस्सी ओठी पड़ेगी। जवाहिर भैया से मैं एक कागज पर ‘काकी’ लिखवा रक्खूँगा। नाम की चिट रहेगी, तो पतंग ठीक उन्हीं के पास पहुँच जायगी।

दो घण्टे बाद प्रफुल्ल मन से श्यामू और भोला अँधेरी कोठरी में बैठे-बैठे पतंग में रस्सी बाँध रहे थे। अकस्मात् शुभ कार्य में विघ्न की तरह उग्र मूर्ति धारण किये हुए विश्वेश्वर वहाँ आ घुसे। भोला और श्यामू को धमकाकर बोला– तुमने हमारे कोट से रुपया निकाला है?

भोला सकपकाकर एक ही डाँट में मुखिबर बन गया! बोला–श्यामू भैया ने रस्सी और पतंग मँगाने के लिए निकाला था।

विश्वेश्वर ने श्यामू को दो तमाचे जड़कर कहा– चोरी सीखकर जेल जायगा? अच्छा, तुझे आज अच्छी तरह समझाता हूँ।-कहकर दो-चार थप्पड़ और जड़कर पतंग फाड़ डाली। अब रस्सियों की ओर देखकर उन्होंने पूछा-ये किसने मँगाई थीं?

भोला ने कहा–इन्होंने मँगाई थीं। कहते थे, इससे पतंग तान कर काकी को राम के यहाँ से नीचे उतारेंगे।

विश्वेश्वर एक क्षण के लिए हतबुद्धि होकर खड़े रह गये। उन्होंने फटी हुई पतंग उठाकर देखी। उस पर एक कागज चिपका था, जिस पर लिखा हुआ था,-‘काकी’।

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