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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

एक सप्ताह

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

(श्री चन्द्रगुप्त विद्यालंकार का जन्म १९०६ ई. में हुआ। कहानियाँ आपने सबसे पहले १९२८ ई. में लिखना प्रारंभ कीं। श्री चन्द्रगुप्त विद्यालंकार की कहानियाँ लिखने की प्रतिभा बहुत ही सुन्दर है। कहानी के टेकनीक का ज्ञान तो आपका बहुत ही अच्छा है। आपकी कहानियाँ गठी हुई, उनकी भाषा विषय के अनुकूल एवं उनका चरित्र-चित्रण बहुत ही स्वाभाविक है।
आपकी कहानियों का एक संग्रह ‘अमावस’ और नाटक ‘रेवा’ अभी हाल में ही प्रकाशित हुए हैं।)

गुलमर्ग
१३ श्रावण...

प्यारे कमल!
मुझे माफ करना, उस दिन शाम की चाय के समय तुम मेरा इन्तजार करते रहे होगे और मैं इधर खिसक आया। आज तुमसे ११०० मील की दूरी पर और तुम्हारी...नगरी से ९००० फीट अधिक ऊँचाई पर बैठकर मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ। तुम जानते ही हो कि मैं किस तबीयत का आदमी हूँ। उफ, वहाँ कितना बोझ था। काम, काम, हर वक्त काम। मेरी तबीयत सहसा ऊब गई और तुम्हें भी सूचना दिये बिना मैं अपनी कार पर इतने लम्बे सफर के लिए खिसक आया। उस दिन चाय के वक्त मुझे मौजूद न पाकर यद्यपि तुम मुझ पर काफी खीझ तो लिये ही होगे, फिर भी असुविधा के लिए माफ कर देना।

हिमालय की यह विशाल घाटी बड़ी सुहावनी है। घने जंगल, निर्मल झरने, विस्तृत मैदान, चारों ओर बरफ से ढँकी पहाड़ों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ और दूर पर दिखायी देने वाली बुलर-झील। इस स्थान से मैं सचमुच प्यार करता हूँ। यहाँ एक सप्ताह बिलकुल निकम्मा रहकर काटूँगा। कुछ नहीं करूँगा। तुम्हें ही पत्र लिखूँगा और तुम्हारे पत्रों को छोड़कर और कुछ नहीं पढ़ूँगा।

भाई कमल, मैं अकेला हूँ। तुमने अनेक बार मेरे इस अकेलेपन की आलोचना की है: मगर यहाँ आकर मैं अनुभव करता हूँ कि जैसे प्रकृति मेरी माँ है। मैं अकेला कहाँ हूँ, मैं तो अपनी माँ की गोद में हूँ।

चिन्ता न करना। मैं यहाँ एक सप्ताह से अधिक नहीं ठहरूँगा। २२ श्रावण की शाम को तुम मुझे अपनी चाय की टेबिल पर ही पाओगे।

बाहर एक कसा हुआ घोड़ा मेरा इन्तजार कर रहा है, अतः बाकी कल।
तुम्हारा–स०

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