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कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


गुलमर्ग
१४ श्रावण...

भाई कमल,
सुबह ९ बजे बिस्तरे से उठा हूँ। अभी तक नींद की खुमारी नहीं टूटी। कल बहुत दिनों के बाद घुड़सवारी की थी, अतः टाँगें कुछ थक गई-सी प्रतीत होती हैं। आज कहीं नहीं जाऊँगा। मेरे मकान में और कोई नहीं है। मैं अपने सोफे पर अकेला पड़ा हूँ। बाहर धीमी-धीमी वर्षा हो रही है। चारों तरफ सन्नाटा है। ओह, सामने की इस खिड़की से कितना अनन्त सौन्दर्य मुझे दिखाई दे रहा है।

आज कुछ नहीं लिखूँगा। सोचा था कि आज एक चित्र बनाऊँगा; मगर कुछ नहीं करूँगा। घण्टों तक इसी तरह निश्चेष्ट भाव से पड़े रहकर, इस खिड़की की राह से प्रकृति का, अपनी माँ का अनूठा सौन्दर्य देखूँगा।

अच्छा, कल तक के लिये विदा।
स्वेच्छाधीन-
स०

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