कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
गुलमर्ग
१५ श्रावण...
कमल,
इस समय रात के ११.३० बजे हैं और मेरी आँखों में नींद नहीं है। सब तरफ गहरा सन्नाटा है। कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही। मेरे कमरे में बिजली की बत्ती जल रही है। खिड़कियाँ बन्द हैं। सरदी इतनी अधिक है कि मैं उन्हें खोल नहीं सका। सन्नाटा इतना गहरा है कि बिजली के प्रकाश से जगमगा रहे इस कमरे में बैठकर मुझे ऐसा अनुभव हो रहा जैसे इस सम्पूर्ण विश्व में केवल मैं ही-मैं बच रहा हूँ, और कोई भी नहीं है। कहीं कोई भी नहीं है। सिर्फ मैं ही हूँ अकेला मैं।
मगर भाई कमल, आज सहसा, न-जाने, क्यों मुझे अपना यह अकेलापन कुछ अनुभव-सा होने लगा। ऐसा क्यों हुआ? क्या सिर्फ इसलिए कि सब ओर सन्नाटा है और मेरी आँखों में नींद नहीं है? नहीं कमल, यह बात नहीं है। मेरे हृदय में आज सहसा एक नई-सी अनुभूति उठ खड़ी हुई जो बिलकुल धुँधली और अस्पष्ट-सी है। मैं अनुभव करता हूँ कि मैंने आज जो कुछ देखा है, उसमें विचित्रता जरा भी नहीं है। मैंने जो कुछ देखा है उसे यदि मैं लिखूँगा, तो या तो तुम मेरा मजाक उड़ाने लगोगे, अथवा मेरे संबंध में बिलकुल भ्रान्त-सी धारणा बना लोगे। मगर भाई मैं कहता हूँ, मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ कि तुम इन दोनों में से एक भी बात न करना। मेरी इस चिट्ठी को पढ़ जाना, और अगर हो सके तो उसी वक्त भुला देना बस और कुछ नहीं।
हाँ, तो सुनो। बात है तो कुछ भी नहीं; मगर फिर भी सुनो। आज दो पहर के वक्त बादल छँट गये थे और सूरज निकल आया था। जैसे विधाता ने इस हरी-भरी घाटी को धो-धोकर धूप में सुखाने के लिए बिछा दिया हो। दोपहर के भोजन के बाद अपनी इस छोटी-सी कोठी के खुले सहन में धीरे-धीरे चहलकदमी करने लगा। सहन फाटक के सामने ही स्वच्छ जल का एक छोटा-सा झरना बह रहा है। उसके ऊपर अनघड़ लकड़ी का पुल इतना सुन्दर पुल है कि उसे देखते ही कलरबक्स लेकर उसका चित्र बनाने की इच्छा होती है। मैं धीरे-धीरे एक बार इस पुल तक जाता था, और उसके बाद कोठी के बरामदे तक वापस लौट आता था।
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