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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


गुलमर्ग
१९ श्रावण

भाई कमल,
इस समय सुबह के ८ बजे हैं। मेरा सामान बँधकर तैयार है। सहन में एक कसा हुआ घोड़ा और सामान के ट्ट्टू तैयार खड़े हैं। मैं इस वक्त नीचे के लिए रवाना होने लगा हूँ। बस, तुम्हें यह पत्र लिखकर मैं घोड़े पर सवार हो जाऊँगा। यह भी पूरी तरह मुमकिन है कि इस पत्र से पहले ही मैं स्वयं तुम्हरे पास पहुँच जाऊँ।

कल मैंने इरादा किया था कि कम-से-कम पाँच दिन यहाँ और ठहरूँगा। उन लोगों से भी मैंने यही बात कही थी। आज दोपहर को मुझसे मिलने के लिए उन्हें आना भी है; मगर आज सुबह नींद से बहुत जल्दी जागकर मैंने यही निश्चय किया कि मुझे यहाँ से चल देना चाहिए। इस आशय की एक चिट्ठी उनके नाम पर भी डाल रहा हूँ कि एक अप्रत्याशित कार्य के लिए मुझे इस तरह बिलकुल अचानक अपनी...नगरी के लिए रवाना होना पड़ रहा है।

तुम इस चिट्ठी को पाकर, अथवा परसों मुझे ही अपने समीप देखकर; हैरान होगे कि बात क्या हुई। कहने को तो मैं कुछ भी नहीं कह सकता हूँ कि अधिक दिन बाहर रहने से काम-काज में हर्ज होता है, इसी से चले आना पड़ा; परन्तु दरअसल बात ऐसी नहीं है। बात वास्तव में इतनी ही है कि अपनी शिक्षा और अपनी परिस्थिति के संस्कारों से बाधित होकर ही मैं आज यहाँ से चल दिया हूँ।

कुछ समझे?...नहीं मुझे यकीन है कि कमल का दुनियाबी दिमाग मेरी इस बात को जरा भी नहीं समझा होगा।

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