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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


हैदर ने पहलू बदलकर पूछा—क्योंकर?

नईमा ने उसी अन्दाज़ से जवाब दिया—तुमने मुझे बीवी बनाकर नहीं, माशूक बनाकर रक्खा। तुमने मुझे नाज़बरदारियों का आदी बनाया लेकिन फ़र्ज का सबक नहीं पढ़ाया। तुमने कभी न अपनी बातों से, न कामों से मुझे यह ख़याल करने का मौक़ा दिया कि इस मुहब्बत की बुनियाद फ़र्ज पर है, तुमने मुझे हमेशा हुसन और मस्तियों के तिलिस्म में फँसा रक्खा और मुझे ख्वाहिशों का ग़ुलाम बना दिया। किसी किश्ती पर अगर फ़र्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसे दरिया में डूब जाने के सिवा और कोई चारा नहीं। लेकिन अब बातों से क्या हासिल, अब तो तुम्हारी ग़ैरत की कटार मेरे ख़ून की प्यासी है और यह लो मेरा सिर उसके सामने झुका हुआ है। हाँ, मेरी एक आख़िरी तमन्ना है, अगर तुम्हारी इजाज़त पाऊँ तो कहूँ।

यह कहते-कहते नईमा की आँखों में आँसुओं की बाढ़ आ गई और हैदर की ग़ैरत उसके सामने ठहर न सकी। उदास स्वर में बोला—क्या कहती हो?

नईमा ने कहा—अच्छा इजाज़त दी है तो इनकार न करना। मुझे एक बार फिर उन अच्छे दिनों की याद ताज़ा कर लेने दो जब मौत की कटार नहीं, मुहब्बत के तीर जिगर को छेदा करते थे, एक बार फिर मुझे अपनी मुहब्बत की बाँहों में ले लो। मेरी आख़िरी बिनती है, एक बार फ़िर अपने हाथों को मेरी गर्दन का हार बना दो। भूल जाओ कि मैंने तुम्हारे साथ दग़ा की है, भूल जाओ कि यह जिस्म गन्दा और नापाक है, मुझे मुहब्बत से गले लगा लो और यह मुझे दे दो। तुम्हारे हाथों में यह अच्छी नहीं मालूम होती। तुम्हारे हाथ मेरे ऊपर न उठेंगे। देखो कि एक कमज़ोर औरत किस तरह ग़ैरत की कटार को अपने जिगर में रख लेती है।

यह कहकर नईमा ने हैदर के कमज़ोर हाथों से वह चमकती हुई तलवार छीन ली और उसके सीने से लिपट गयी। हैदर झिझका लेकिन वह सिर्फ़ ऊपरी झिझक थी। अभिमान और प्रतिशोध-भावना की दीवार टूट गयी। दोनों आलिंगन पाश में बँध गए और दोनों की आँखें उमड़ आयीं।

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