कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
नादान दोस्त
केशव के घर में कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अण्डे दिये थे। केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों बड़े ध्यान से चिड़ियों को वहाँ आते-जाते देखा करते। सवेरे दोनों आँखें मलते कार्निस के सामने पहुँच जाते और चिड़ा या चिड़िया दोनों को वहाँ बैठा पाते। उनको देखने में दोनों बच्चों को न मालूम क्या मज़ा मिलता, दूध और जलेबी की भी सुध न रहती थी। दोनों के दिल में तरह-तरह के सवाल उठते। अण्डे कितने बड़े होंगे? किस रंग के होंगे? कितने होंगे? क्या खाते होंगे? उनमें बच्चे किस तरह निकल आयेंगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे? घोंसला कैसा है? लेकिन इन बातों का जवाब देने वाला कोई नहीं। न अम्माँ को घर के काम-धंधों से फुर्सत थी न बाबूजी को पढ़ने-लिखने से। दोनों बच्चे आपस ही में सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे लिया करते थे।
श्यामा कहती– क्यों भइया, बच्चे निकलकर फुर से उड़ जायेंगे?
केशव विद्वानों जैसे गर्व से कहता– नहीं री पगली, पहले पर निकलेंगे। बगैर परों के बेचारे कैसे उड़ेगे?
श्यामा– बच्चों को क्या खिलायेगी बेचारी?
केशव इस पेचीदा सवाल का जवाब कुछ न दे सकता था।
इस तरह तीन-चान दिन गुज़र गये। दोनों बच्चों की जिज्ञासा दिन-दिन बढ़ती जाती थी। अण्डों को देखने के लिए वह अधीर हो उठते थे। उन्होंने अनुमान लगाया कि अब बच्चे ज़रूर निकल आये होंगे। बच्चों के चारे का सवाल अब उनके सामने आ खड़ा हुआ। चिड़ियाँ बेचारी इतना दाना कहाँ पायेंगी कि सारे बच्चों का पेट भरे। ग़रीब बच्चे भूख के मारे चूं-चूं करके मर जायेंगे।
इस मुसीबत का अन्दाज़ा करके दोनों घबरा उठे। दोनों ने फैसला किया कि कार्निस पर थोड़ा-सा दाना रख दिया जाय। श्यामा खुश होकर बोली– तब तो चिड़ियों को चारे के लिए कहीं उड़कर न जाना पड़ेगा न?
केशव– नहीं, तब क्यों जायेंगी?
श्यामा– क्यों भइया, बच्चों को धूप न लगती होगी?
केशव का ध्यान इस तकलीफ़ की तरफ़ न गया था। बोला– ज़रूर तकलीफ़ हो रही होगी। बेचारे प्यास के मारे तड़फ रहे होंगे। ऊपर छाया भी तो कोई नहीं।
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