उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
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जब कोई बात हमारी आशा के विरुद्ध होती है, तभी दुःख होता है। मंसाराम को निर्मला से कभी इस बात की आशा न थी कि वे उसकी शिकायत करेंगी। इसलिए उसे घोर वेदना हो रही थी। वह क्यों मेरी शिकायत करती हैं? क्या चाहती हैं? यही न कि वह मेरे पति की कमाई खाता है, इसके पढ़ने-लिखने में रुपये खर्च होता हैं, कपड़े पहनता है। उनकी यही इच्छा होगी कि यह घर में न रहे। मेरे न रहने से उनके रुपये बच जायँगे। वह मुझसे बहुत प्रसन्नचित्त रहती है। कभी मैंने उनके मुँह से कटु शब्द नहीं सुने। क्या यह सब कौशल है? हो सकता है? चिड़िया को जाल में फँसाने के पहले शिकारी दाने बिखेरता है। आह! मैं नहीं जानता था कि दाने के नीचे जाल है; यह मातृस्नेह केवल मेरे निर्वासन की भूमिका है।
अच्छा, मेरा यहाँ रहना क्यों बुरा लगता है? जो उनका पति है, क्या वह मेरा पिता नहीं है? क्या पिता-पुत्र का संबंध स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध से कुछ कम घनिष्ट है? अगर मुझे उसके सम्पूर्ण आधिपत्य से ईर्ष्या नहीं होती-वह जो चाहें करें, मैं मुँह नहीं खोल सकता-तो वह मुझे पितृ-प्रेम से क्यों वंचित करना चाहती हैं? वह अपने साम्राज्य में क्यों मुझे एक अंगुल भर भूमि भी देना नहीं चाहतीं। आप पक्के महल में रह कर क्यों मुझे वृक्ष की छाया में बैठा नहीं देख सकतीं।
हाँ, वह समझती होंगी कि यह बड़ा होकर मेरे पति की सम्पत्ति का स्वामी हो जायगा, इसलिए अभी से निकाल देना अच्छा है? उनको कैसे विश्वास दिलाऊँ कि मेरी ओर से यह शंका न करें। उन्हें क्योंकर बताऊँ कि मंसाराम विष खाकर प्राण दे देगा, इसके पहले कि उनका अहित करे। उसे चाहे कितनी ही कठिनाइयाँ सहनी पड़ें वह उनके हृदय का शूल न बनेगा। यों तो पिता जी ने मुझे जन्म दिया है और अब भी मुझ पर उनका स्नेह कम नहीं है; लेकिन क्या मैं इतना भी नहीं जानता कि जिस दिन पिताजी ने उनसे विवाह किया, उसी दिन उन्होंने हमें अपने हृदय से बाहर निकाल दिया? अब हम अनाथों की भाँति यहाँ पड़े रह सकते हैं; इस घर पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। कदाचित् पूर्व संस्कारों के कारण यहाँ अन्य अनाथों से हमारी दशा कुछ अच्छी है; पर हैं अनाथ ही।
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